________________
पंचम कर्मग्रन्थ
४३ दोनों की सत्ता, मिच्छो-मिथ्यात्वी, अंतमुहुत्तं-अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त, भवे-होती है, तित्थे-तीर्थकर नामकर्म के होने पर भी।
गाथार्थ-पहले तीन गुणस्थानों में मिथ्यात्व मोहनीय की सत्ता अवश्य होती है और अविरति आदि आठ गुणस्थानों में भजनीय है, सासादन गुणस्थान में सम्यक्त्व मोहनीय की सत्ता निश्चित रूप से होती है और मिथ्यात्व आदि दस गुणस्थानों में विकल्प से होती है।
सासादन और मिश्र गुणस्थान में मिश्र प्रकृति की सत्ता निश्चित रूप से रहती है। मिथ्यात्व आदि नौ गुणस्थानों में विकल्प से है। पहले दो गुणस्थानों में अनन्तानुबंधी कषाय की सत्ता अवश्य होती है और मिश्र आदि नौ गुणस्थानों में भजनीय है।
__ आहारक सप्तक सभी गुणस्थानों में विकल्प से है। दूसरे और तीसरे गुणस्थान के सिवाय शेष गुणस्थानों में तीर्थकर नामकर्म विकल्प से होता है और दोनों (आहारक सप्तक व तीर्थंकर नामकर्म) की सत्ता वाला मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में नहीं आता है। यदि तीर्थंकर नामकर्म की सत्तावाला कोई जीव मिथ्यात्व में आता है तो सिर्फ अन्तमुहूर्त तक के लिये आता है।
विशेषार्थ-इन तीन गाथाओं द्वारा गुणस्थानों में कुछ प्रकृतियों की सत्ता विषयक स्थिति का स्पष्टीकरण किया गया है कि कौन-सी प्रकृति किस गुणस्थान तक निश्चित व विकल्प होती है। मिथ्यात्व व सम्यक्त्व प्रकृति की सत्ता का नियम ___ मिथ्यात्व प्रकृति की सत्ता के बारे में बतलाया है कि 'पढमतिगुणेसु मिच्छं नियमा' पहले तीन गुणस्थानों में मिथ्यात्व मोहनीय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org