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________________ पचम कर्मग्रन्थ ४२५. बतलाये हैं। दोनों ग्रन्थों के भेदक्रम में भी अन्तर है । जिज्ञासु जनों को इस अन्तर के कारणों का अन्वेषण करना चाहिए। ग्रहण किये गये कर्मस्कन्धों को कर्म प्रकतियों में विभाजित करने की रीति पंचम कर्मग्रन्थ गाथा ७६, ८० में सिर्फ ग्रहण किये गये कर्मस्कन्धों के विभाग का क्रम बतलाया है कि आयुकर्म को सबसे कम, उससे नाम और गोत्र कर्म को अधिक, उससे अंतराय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण को अधिक तथा मोहनीय को अंतराय आदि से भी अधिक भाग मिलता है तथा वेदनीय कर्म का भाग मोहनीय कर्म से भी अधिक है। इस प्रकार उससे इतना ही ज्ञात होता है कि अमुक कर्म को अधिक भाग मिलता है और अमुक कर्म को कम भाग । किंतु गो० कर्मकांड में इस क्रम के साथ-ही-साथ विभाग करने की रीति बतलायी है । जो इस प्रकार है____ कर्मग्रन्थ की तरह गो० कर्मकांड में भी ग्रहण किये हुए कर्मस्कंधों का मूल कर्म प्रकृतियों में बंटवारे का क्रम बतलाया है कि वेदनीय के सिवाय बाकी मूल प्रकृतियों में द्रव्य का स्थिति के अनुसार विभाग होता है . सेसाणं पयडीणं ठिदिपछिमागेण होदि दव्वं । __ आवलिअसंख मागो पडिभागो होदि णियमेण ॥१६४ वेदनीय के सिवाय शेष मूल प्रकृतियों के द्रव्य का स्थिति के अनुसार विभाग होता है । जिसकी स्थिति अधिक है उसको अधिक, कम को कम और समान स्थिति वाले को समान द्रव्य हिस्से में आता है और उनके भाग करने में प्रतिभागहार नियम से आवली के असंख्यातवें भाग प्रमाण समझना चाहिये । आयु आदि शेष सात कर्मों में विभाग का क्रम इस प्रकार है -- आउगभागो थोवो णामागोवे समो तदो अहिओ। घादितियेवि य तत्तो मोहे तत्तो तदो तदिये ॥१६२ सब मूल प्रकृतियों में आयुकर्म का हिस्सा थोड़ा है । नाम और गोत्र कर्म का हिस्सा आपस में समान है तो भी आयुकर्म के भाग से अधिक है । अंतराय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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