SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४० ) ४११ ४१७ शेष घातिक कर्मों का क्षपणक्रम ३६३ सयोगि और अयोगिकेवली गुणस्थानों में होने वाले कार्य ३६४ ग्रन्थ का उपसंहार ३६७ परिशिष्ट ३६६ १. पंचम कर्मग्रन्थ की मूलगाथायें ४०१ २. कर्मों की बन्ध, उदय, सत्ता प्रकृतियों की संख्या में भिन्नता का कारण ४०६ ३. मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियों में भूयस्कार आदि बंध ४. कर्म प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबन्ध ५. आयुकर्म के अबाधाकाल का स्पष्टीकरण ४१६ ६. योगस्थानों का विवेचन ४२० ७. ग्रहण किये गये, कर्मस्कन्धों को कर्म प्रकृतियों में विभाजित करने की रीति ८. उत्तर प्रकृतियों में पुद्गलद्रव्य के वितरण तथा हीनाधिकता का विवेचन ६. पल्य को भरने में लिये जाने वाले बालानों के बारे ___ में अनुयोगद्वार सूत्र आदि का कथन १०. दिगम्बर साहित्य में पल्योपम का वर्णन ११. दिगम्बर ग्रन्थों में पुद्गल परावर्तों का वर्णन १२. उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशबन्ध के स्वामियों का गोम्मटसार कर्मकांड में आगत वर्णन १३. गुणश्रेणि की रचना का स्पष्टीकरण ४४६ १४. क्षपकणि के विधान का स्पष्टीकरण १५. पंचम कर्मग्रन्थ की गाथाओं की अकाराद्यनुक्रमणिका ४५५ ४२८ ४४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy