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पंचम कर्मग्रन्थ
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___'नमिय जिणं धुवबंधोदयसत्ता' आदि पहली गाथा में जिन विषयों के वर्णन करने की प्रतिज्ञा की गई थी, उनका वर्णन करने के पश्चात ग्रन्थकार अपना और ग्रथ का नाम बतलाते हुए ग्रथ को समाप्त करते हैं।
देविदसूरिलिहियं सयगमिणं आयसरणट्टा ॥१००॥ ___ शब्दार्थ-देविदसूरि-देवेन्द्रसूरि ने, लिहियं--- लिखा, सयगं-शतक नाम का, इण-यह ग्रंथ, आयसरणट्टा-आत्मस्मरण करने, बोध प्राप्त करने के लिये।
___ गाथार्थ-देवेन्द्रसूरि ने आत्मा का बोध प्राप्त करने के लिए इस शतक नामक ग्रन्थ की रचना की है।
विशेषार्थ-- उपसंहार के रूप में ग्रन्थकार अपनी लघुता प्रदर्शित करते हुये कहते हैं कि इस प्रथ का नाम 'शतक' है, क्योंकि इसमें सौ गाथायें हैं और उनमें प्रारम्भ में की गई प्रतिज्ञा के अनुसार वर्ण्य विषयों का वर्णन किया गया है और यह ग्रन्थ स्वस्वरूप बोध के लिए बनाया गया है।
इस प्रकार पंचम कर्मग्रन्थ की व्याख्या समाप्त हुई ।
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