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पंचम कर्मग्रन्थ
३६५ कि अयोगि अवस्था में जिन कर्मों का उदय नहीं होता है, उनकी स्थिति एक समय कम होती है। ___ सयोगकेवली गुणस्थान के अन्तिम समय में साता या असाता वेदनीय में से कोई एक वेदनीय, औदारिक, तैजस, कार्मण, छह संस्थान, प्रथम संहनन, औदारिक अंगोपांग, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, पराघात, उच्छ्वास, शुभ और अशुभ विहायोगति, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुस्वर, दुःस्वर और निर्माण, इन तीस प्रकृतियों के उदय और उदीरणा का विच्छेद हो जाता है और उसके अनन्तर समय में अयोगकेवली हो जाते हैं।
इस अयोगकेवली अवस्था में व्युपरतक्रियाप्रतिपाती ध्यान को करते हैं। यहां स्थितिघात आदि नहीं होता है, अतः जिन कर्मों का उदय होता है, उनको तो स्थिति का क्षय होने से अनुभव करके नष्ट कर देते हैं, किन्तु जिन प्रकृतियों का उदय नहीं होता, उनका स्तिबुकसंक्रम के द्वारा वेद्यमान प्रकृतियों में संक्रम करके अयोगि अवस्था के उपांत समय तक वेदन करते हैं और उपांत समय में ७२ का और अंत समय में १३ प्रकृतियों का क्षय करके निराकर, निरंजन होकर नित्य सुख के धाम मोक्ष को प्राप्त करते हैं।'
__ इस प्रकार से क्षपक श्रेणि का स्वरूप समझना चाहिमे । उसका दिग्दर्शक विवरण यह है
१ क्षपक श्रेणि का विशेष विवरण परिशिष्ट में देखिये ।
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