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________________ ३८८ शतक पांच अंतराय, पांच ज्ञानावरण और चार दर्शनावरण के क्षय होने पर, नाणी- केवलज्ञानी। गाथार्थ--(क्षपक श्रोणि वाला) अनंतानुबंधी कषाय, मिथ्यात्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय, सम्यक्त्व मोहनीय, तीन आयु, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, स्त्यानद्धित्रिक, उद्योत नाम, तिर्यंचद्विक, नरकद्विक, स्थावरद्विक, साधारण नाम, आतप नाम, आठ (दूसरी और तीसरी) कषाय, नपुसक वेद, स्त्रीवेद तथा-- हास्यादि षट्क, पुरुष वेद, संज्वलन कषाय, दो निद्रायें, पांच अंतराय,पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, इन प्रकृतियों का क्षय करके जीव केवलज्ञानी होता है। , विशेषार्थ--क्षपक श्रेणि का आरोहक जिन प्रकृतियों को क्षय करता है, उनके नाम गाथा में बतलाये हैं । उपशम श्रेणि और क्षपक श्रोणि में यह अन्तर है कि इन दोनों श्रेणियों के आरोहक मोहनीय कर्म के उपशम और क्षय करने के लिए. अग्रसर होते हैं लेकिन उपशम श्रेणि में तो प्रकृतियों के उदय को शांत किया जाता है, प्रकृतियों की सत्ता बनी रहती है और अन्तमुहूर्त के लिये अपना फल नहीं दे सकती हैं, किन्तु क्षपक श्रेणि में उनकी सत्ता ही नष्ट कर दी जाती है, जिससे उनके पुनः उदय होने का भय नहीं रहता है। इसी कारण क्षपक श्रेणि में पतन नहीं होता है । उक्त कथन का सारांश यह है कि उपशम श्रोणि और क्षपक श्रेणि दोनों का केन्द्रबिन्दु मोहनीय कर्म है और उपशम श्रोणि में मोहनीय कर्म का उपशम होने से पुनः उदय हो जाता है । जिससे पतन होने पर की गई पारिणामिक शुद्धि व्यर्थ हो जाती है। किन्तु क्षपक श्रोणि में मोहनीय कर्म का समूल क्षय होने से पुनः उदय नहीं होता है और उदय न होने से पारिणामिक शुद्धि पूर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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