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पंचम कर्मग्रन्थ
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इसतरह लियाको
इस उबलोल के मध्य दोनों लोनों लोअलग करके जपर और नीचे की ओर
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ऊर्वलोक के उक्त नये आकार को अधोलोक के नये आकार के साथ मिला देने पर सात राजू चौड़ा, सात राजू ऊंचा और सात राजू मोटा चौकोर क्षेत्र हो जाता है । अतः ऊँचाई, चौड़ाई और मोटाई तीनों सात-सात राजू होने के कारण लोक सात राजू का घनरूप सिद्ध होता है । जो इस प्रकार है
यद्यपि लोक वृत्त है और यह घन समचतुरस्र होता है। अतः इसका वृत्त करने के लिये उसे १६ से गुणा करके २२ से भाग देना चाहिये । तब वह कुछ कम सात राज लम्बा, चौड़ा, ' गोल सिद्ध होता है । लेकिन व्यवहार में सात राजू का समचतुरस्रघन लोक समझना चाहिये।
इस प्रकार से लोक का स्वरूप बतलाने के बाद अब श्रोणि और
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