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पंचम कर्मग्रन्थ
प्रदेशबन्ध के समग्र वर्णन में अभी तक उसका कारण नहीं बताया है । अतः अब प्रदेशबन्ध और उसके साथ ही पूर्वोक्त प्रकृति, स्थिति और अनुभाग बन्ध के कारणों का भी निर्देश करते हैं ।
जोगा पयडिपएसं ठिइअणुभागं कसायाउ ॥६६॥
शब्दार्थ-जोगा-योग से, पयडिपएसं-प्रकृतिबंध और प्रदेशबंध, ठिइअणुभाग-स्थितिबंध और अनुभागबंध, कसायाउकषाय द्वारा।
गाथार्थ-प्रकृतिबन्ध और प्रदेशबन्ध योग से होते हैं और स्थितिबन्ध व अनुभागबन्ध कषाय से होते हैं । विशेषार्थ-पूर्व में बंध के प्रकृतिबंध, प्रदेशबंध, स्थितिबंध और अनुभागबंध, यह चार भेद बतला आये हैं । यहां उनके कारणों को बतलाते हैं कि प्रकृतिबंध और प्रदेशबंध का कारण योग है और स्थितिबंध व अनुभागबंध का कारण कषाय है। __ योग और कषाय का स्वरूप भी पहले बतलाया जा चुका है कि योग एक शक्ति का नाम है जो निमित्त कारणों के मिलने पर कर्म वर्गणाओं को कर्म रूप परिणमाती है। योग के द्वारा कर्म पुद्गलों का अमुक परिमाण में कर्म रूप होना और उनमें ज्ञानादि गुणों को आवरित करने का स्वभाव पड़ना, यह योग का कार्य है। ___ आगत कर्म पुद्गलों का अमुक काल तक आत्मा के साथ सम्बन्ध रहना और उनमें तीव्र, मंद आदि फल देने की शक्ति का पड़ना कषाय द्वारा किया जाता है। इसीलिये प्रकृतिबंध और प्रदेशबंध का कारण योग और स्थितिबंध व अनुभागबंध का कारण कषाय को माना है । जब तक कषाय रहती है तब तक तो चारों बंध होते हैं और कषाय का उपशम या क्षय हो जाने पर सिर्फ प्रकृति व प्रदेश बंध, यह दो बंध होते हैं।
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