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________________ पंचम कर्म ग्रन्थ ३५९ कभी दो समय अधिक, कभी तीन समय अधिक यावत अन्तर्मुहूर्त के समयों के जितने भेद है, उन उन समयों को लेकर बांधता है । इस प्रकार जब एक प्रकृति और एक जीव की अपेक्षा से ही स्थिति के असंख्यात भेद हो जाते हैं तब सब प्रकृतियों और सब जीवों की अपेक्षा से प्रकृति के भेदों से स्थिति के भेदों का असंख्यातगुणा होना सम्भव है । इसी कारण प्रकृति के भेदों से स्थिति के भेद असंख्यात - गुण होते हैं । स्थिति के भेदों से स्थितिबंध -अध्यवसायस्थान' असंख्यातगुणे हैं । एक - एक स्थितिबंध के कारणभूत अध्यवसाय - परिणाम अनेक होते हैं, क्योंकि सबसे जघन्य स्थिति का बंध भी असंख्यात लोकप्रमाण अध्यवसायों से होता है अर्थात् एक ही स्थितिबंध किसी जीव के किसी तरह के परिणाम से होता है और किसी जीव के किसी तरह के परिणाम से होता है । इसी प्रकार आगे भी समझना चाहिये । अतः स्थिति के भेदों से स्थितिबन्ध - अध्यवसायस्थान असंख्यातगुणे माने गये हैं । स्थितिबंध -अध्यवसायस्थान से " अनुभागबंध -अध्यवसायस्थान असंख्यातगुणे हैं । अर्थात् स्थितिबंध के कारणभूत परिणामों से अनुभागबंध के कारणभूत परिणाम असंख्यातगुणे हैं। इसका कारण यह है कि एक-एक स्थितिबंध - अध्यवसायस्थान तो अन्तर्मुहूर्त तक रहता है, किन्तु एक-एक अनुभागबंध -अध्यवसायस्थान कम से कम एक समय और अधिक-से-अधिक आठ समय तक ही रहता है । अतः एक-एक स्थितिबंध -अध्यवसायस्थान में असंख्यात लोकाकाश के. प्रदेशों के बराबर अनुभागबंध - अध्यवसायस्थान होते हैं । 'कषाय के उदय से होने वाले जीव के जिन परिणामविशेषों से स्थितिबंध होता है, उन परिणामों को स्थितिबन्ध अध्यवसाय कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org t
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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