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शतक _प्रदेशबंध का विवेचन पूर्ण करने के पहले यह भी स्पष्ट करते हैं कि पूर्वोक्त प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध में से अनेक प्रकार के प्रकृतिबंध और प्रदेशबंध के कारण योगस्थान हैं। अनेक प्रकार के स्थितिबंध के कारण स्थितिबंध-अध्यवसायस्थान हैं तथा अनेक प्रकार के अनुभागबंध के कारण अनुभागबंध-अध्यवसायस्थान हैं। अतः अब योगस्थान और उनके कार्यों का परस्पर में अल्पबहुत्व बतलाते हैं।
सेढिअसंखिज्जंसे जोगट्टाणाणि पडिठिइभेया। ठिइबंधज्झवसायाणुभागठाणा असंखगणा ॥५॥ तत्तो कम्मपएसा अणंतगुणिया तओ रसच्छेया।
शब्दार्थ-सेढिअसंखिज्जसे- श्रेणि के असंख्यातवें भाग, जोगट्ठाणाणि-योगस्थान, पडिठिइभेया-प्रकृतिभेद, स्थितिभेद, ठिइबंधज्झवसाया-स्थितिबंध के अध्यवसायस्थान, अणुभागठाणा -अनुभाग बंध के अध्यवसायस्थान, असंखगुणा-असंख्यात गुणे, तत्तो-उनसे भी, कम्मपएसा-कर्मप्रदेश, कर्म के स्कंध, अणंतगु
मोहाउयवज्जाणं णुक्कोसो साइयाइओ होइ । साई अधुवा सेसा आउगमोहाण सव्वेवि ॥ नाणंतरायनिद्दा अणवज्जकसाय भयदुगुछाण । दसणचउपयलाणं चउविगप्पो अणुक्कोसो ॥ सेसा साई अधुवा सव्वे सव्वाण सेसपयईणं ।
-पंचसंग्रह २६०, २६५, २६६ छण्डंपि अणुक्कस्सो पदेसबंधो दु चदुवियप्पो दु। सेसतिये दुवियप्पो मोहाऊणं च दुविथप्पो । तीसहमणुक्कस्सो उत्तरपयडीसु चउविहो बंधो । सेसतिये दुवियप्पो सेसचउक्केवि दुवियप्पो ॥
__ --गो० कर्मकार २०७, २०८
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