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________________ ( ३४ ) गाथा २६ १२४-१२५ कषायों की उत्कृष्ट स्थिति १२५ वर्णचतुष्क की उत्कृष्ट स्थिति १२५ गाथा ३० १२६-१२७ दस और पन्द्रह कोड़ा-कोड़ी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाली प्रकृतियों के नाम १२६ गाथा ३१, ३२ १२७-१३२ बीस कोड़ा-कोड़ी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाली प्रकृतियों के नाम १२८ उत्कृष्ट स्थितिबन्ध में अबाधाकाल का प्रमाण १२६ गाथा ३३ १३२-१३६ आहारकद्विक और तीर्थकर नाम की उत्कृष्ट व जघन्य स्थिति और अबाधाकाल १३२ तीर्थंकर नामकर्म का स्थिति सम्बन्धी शंका-समाधान मनुष्य और तिर्यन्च आयु की उत्कृष्ट स्थिति गाथा ३४ १३७-१४२ एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और असंज्ञी जीव के आयुकर्म के उत्कृष्ट स्थितिबन्ध का प्रमाण १३७ आयुकर्म के अबाधाकाल सम्बन्धी विचार गाथा ३५ १४३-१४४ पन्द्रह घाति और तीन अघाति प्रकृतियों की जघन्यस्थिति १४३ गाथा ३६ १४४-१४६ संज्वलनत्रिक व पुरुषवेद को जघन्य स्थिति १४३ शेष उत्तर प्रकृतियों की जघन्य स्थिति निकालने के लिये सामान्य नियम १४६ गाथा ३७, ३८ १४६-१५४ एकेन्द्रिय जीव के उत्तर प्रकृतियों के उत्कृष्ट और जघन्य १३३ १३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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