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________________ ३२८ शतक है, उसे बादर द्रव्यपुद्गल परावर्त कहते हैं। और जितने समय में समस्त परमाणुओं को औदारिक आदि सात वर्गणाओं में से किसी एक वर्गणा रूप परिणमा कर उन्हें ग्रहण करके छोड़ देता है, उतने समय । को सूक्ष्म द्रव्यपुद्गल परावर्त कहते हैं। उक्त कथन का सारांश यह है कि बादर द्रव्यपुद्गल परावर्त में तो समस्त परमाणुओं को आहारक को छोड़कर सात रूप से भोगकर छोड़ा जाता है और सूक्ष्म द्रव्यपुद्गल परावर्त में उन्हें केवल किसी एक रूप से ग्रहण करके छोड़ा जाता है । यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यदि समस्त परमाणुओं को एक औदारिक शरीर रूप परिणमाते समय मध्य में कुछ परमाणुओं को वैक्रिय शरीर आदि रूप ग्रहण करके छोड़ दिया या समस्त परमाणुओं को वैक्रिय आदि शरीर रूप ग्रहण करके छोड़ दिया अथवा समस्त परमाणुओं को वैक्रिय शरीर रूप परिणमाते समय बीच-बीच में कुछ परमाणुओं को औदारिक आदि रूप से ग्रहण करके छोड़ दिया तो वे गणना में नहीं लिये जाते हैं । किन्तु जिस शरीर रूप परिवर्तन चालू है, उसी शरीर रूप जो पुद्गल परमाणु ग्रहण करके छोड़े जाते हैं, उन्हें ही सूक्ष्म द्रव्यपुद्गल परावर्त में ग्रहण किया जाता है। १ आहारक शरीर को छोड़ने का कारण यह है कि आहारक शरीर एक जीव को अधिक-से-अधिक चार बार ही हो सकता है। अतः वह पुद्गल परावर्त में उपयोगी नहीं हैआहारकशरीरं चोत्कृष्टतोऽप्येकजीवस्य वारचतुष्टयमेव सम्भवति, ततस्तस्य पुद्गलपरावतं प्रत्यनुपयोगान्न ग्रहणं कृतमिति । -प्रवचन० टीका, पृ० ३०८ उ० २ एतस्मिन् सूक्ष्मे द्रव्यपुद्गलपरावर्ते विवक्षितकशरीरव्यतिरेकेणान्य शरीरतया ये परिभुज्य परिभुज्य परित्यजन्ते ते न गण्यन्ते, किन्तु प्रभूतेऽपि काले गते सति ये च विवक्षितकशरीररूपतया परिणम्यन्ते त एव गण्यन्ते । -प्रवचन० टीका पृ० ३०८ उ० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org aumAsia Apnainik Jain Education International
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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