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पंचम कर्मग्रन्थ
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का प्रमाण पूर्ववत् समझना चाहिये । उत्सेधांगुल से पाँच सौ गुणा प्रमाणांगुल होता है । यही भरत चक्रवर्ती का आत्मांगुल है।'
इस प्रकार से पल्योपम के भेद और उनका स्वरूप जानना चाहिये । पूर्व में सासादन आदि गुणस्थानों का उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गल परावर्त बतलाया गया है । अतः अब आगे तीन गाथाओं में पुद्गल परावर्त का स्वरूप स्पष्ट करते हैं।
दवे खित्ते काले भावे चउह दुह बायरो सुहुमो। होइ अणंतुस्सप्पिणिपरिमाणो पुग्गलपरट्ठो ॥८६॥ उरलाइसत्तगेणं एगजिउ मुयइ फुसिय सबअणू। जत्तियकालि स थूलो दव्वे सुहुमो सगन्नयरा ॥७॥ लोगपएसोसप्पिणिसमया अणुभागबंधठाणा य । जह तह कममरणेणं पुट्ठा खित्ताइ थूलियरा ॥८॥ ___ शब्दार्थ-दवे-द्रव्य विषयक, खित्ते-क्षेत्र विषयक, काले -काल विषयक, भाव-भाव विषयक, चउह-चार प्रकार का, दुह -दो प्रकार का, बायरो-बादर, सुहुमो- सूक्ष्म, होइ-होता है, अणंतुस्सप्पिणिपरिमाणो-अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण, पुग्गलपरट्ठो- पुद्गल परावर्त ।
उरलाइसत्तगेणं-औदारिक आदि सात वर्गणा रूप से, एगजिउ--एक जीव, मुयइ-छोड़ दे, फुसिय-स्पर्श करके, परिणमित करके, सम्वअणू- सभी परमाणुओं को, जत्तियकालि-जितने समय में, स-उतना काल, थूलो-स्थूल, बादर, दम्वे-द्रव्यपुद्गल परावर्त, सुहुमो-सूक्ष्म द्रव्यपुद्गल परावर्त, सगन्नयरा-सात में से किसी एक एक वर्गणा के द्वारा ।
१ तत्त्वार्थ राजवार्तिक पृ० १४७-१४८ २ दिगम्बर साहित्य में किये गये पल्यों के वर्णन के लिये परिशिष्ट देखिये।
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