________________
पंचम कर्मग्रन्थ
'दृष्टिवादोक्तद्रव्यमानोपयोगित्वाद् बालाग्रप्ररूपणाऽत्रप्रयोजन
- अनुयोगद्वार टीका पृ० १९३
अंगुल के भेदों की व्याख्या
उद्धारपत्योपम का स्वरूप बतलाने के प्रसंग में उत्सेधांगुल के द्वारा निष्पन्न एक योजन लम्बे, चौड़े, गहरे गड्ढ़े - पल्य को बनाने का संकेत किया था और उसी के अनुसन्धान में आत्मांगुल, उत्सेधांगुल और प्रमाणांगुल यह तीन अंगुल के भेद बतलाये हैं । यहाँ उनका स्वरूप समझाते हैं ।
वतीति । '
३२१
आत्मांगुल - अपने अंगुल के द्वारा नापने पर अपने शरीर की ऊँचाई १०८ अंगुल प्रमाण होती है । वह अंगुल उसका आत्मांगुल कहलाता है । इस अंगुल का प्रमाण सर्वदा एकसा नहीं रहता है, क्योंकि काल भेद से मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई घटती-बढ़ती रहती है ।
उत्सेधांगुल - परमाणु दो प्रकार का होता है— एक निश्चय परमाणु और दूसरा व्यवहार परमाणु । अनन्त निश्चय परमाणुओं का एक व्यवहार परमाणु होता है । यद्यपि वह व्यवहार परमाणु वास्तव में स्कन्ध है किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से उसे परमाणु कह दिया जाता है, क्योंकि वह इतना सूक्ष्म होता है कि तीक्ष्ण से तीक्ष्ण शस्त्र के द्वारा भी इसका छेदन - भेदन नहीं हो सकता है, फिर भी माप के लिए इसको मूल कारण माना गया है । जो इस प्रकार है - अनन्त व्यवहार परमाणुओं की एक उत्श्लक्ष्ण- श्लक्ष्णका और आठ उत्श्लक्ष्ण- श्लक्ष्णका की एक श्लक्ष्ण - श्लक्ष्णका होती है ।' आठ श्लक्ष्ण - श्लक्ष्णिका का एक
१ जीवसमास सूत्र में अनन्त उत्श्लक्ष्ण - श्लक्ष्णका की एक श्लक्ष्ण - श्लक्ष्णका बतलाई है, लेकिन आगमों में अनेक स्थानों पर अठगुनी ही बतलाई है । अतः यहां भी आगम के अनुसार कथन किया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org