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________________ पंचम कर्मग्रन्थ ३१६ अद्धापल्योपम-पूर्वोक्त बादर उद्धारपल्य से सौ-सौ वर्ष के बाद एक-एक केशान निकालने पर जितने समय में वह खाली होता है, उतने समय को बादर अद्धापल्योपम काल कहते हैं । दस कोटाकोटी बादर अद्धापल्योपम काल का एक बादर अद्धासागरोपम काल होता है। सूक्ष्म उद्धारपल्य में से सौ-सौ वर्ष के बाद केशाग्र का एक-एक खण्ड निकालने पर जितने समय में वह पल्य खाली होता है, उतने समय को सूक्ष्म अद्धापल्योपम काल कहते हैं । दस कोटाकोटि सूक्ष्म अद्धापल्योपम का एक सूक्ष्म अद्धासागरोपम काल होता है। दस कोटाकोटी सूक्ष्म अद्धासागरोपम की एक अवसर्पिणी और उतने की ही एक उत्सर्पिणी होती है। इन सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सूक्ष्म अद्धासागरोपम के द्वारा देव, मनुष्य, तिर्यंच, नारक, चारों गति के जीवों की आयु, कर्मों की स्थिति आदि जानी जाती है। एएहिं सुहमेहिं अद्धाप० सागरोवमेहि किं पओअणं ? एएहिं सुहमेहि अद्धाप० सागरो० नेरइअतिरिक्खजोणिअमणुस्सदेवाणं आउअं मविज्जइ। --अनुयोगद्वार सूत्र १३६ क्षेत्रपल्योपम-पहले की तरह एक योजन लंबे-चौड़े और गहरे गड्डे में एक दिन से लेकर सात दिन तक उगे हुए बालों के अग्रभाग को पूर्व की तरह ठसाठस भर दो। वे अग्रभाग आकाश के जिन प्रदेशों को स्पर्श करें उनमें से प्रति समय एक-एक प्रदेश का अपहरण करतेकरते जितने समय में समस्त प्रदेशों का अपहरण किया जा सके, उतने समय को बादर क्षेत्रपल्योपम काल कहते हैं । यह काल असंख्यात उत्सर्पिणी और असंख्यात अवसर्पिणी काल के बराबर होता है। दस कोटाकोटी बादर क्षेत्रपल्योपम का एक बादर क्षेत्रसागरोपम काल होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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