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शतक
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शब्दार्थ - उद्धारअद्धखित्तं - उद्धार, अद्धा और क्षेत्र, पलियपल्योपम, तिहा - तीन प्रकार का समयवाससयसमए - समय, सौ वर्ष और समय में, केसवहारो - बालाग्र का उद्धरण करें, दीवो - दहि- द्वीप और समुद्र, आउतसाइ - आयु और त्रसादि जोवों का, परिमाणं - परिमाण, गणना ।
गाथार्थ - उद्धार, अद्धा और क्षेत्र, इस प्रकार पल्योपम के तीन भेद हैं । उनमें अनुक्रम से एक समय में, सौ वर्ष में और एक समय में बालाग्र का उद्धरण किया जाता है । जिससे उनके द्वारा क्रम से द्वीप समुद्रों, आयु और त्रसादि जीवों की गणना की जाती है।
विशेषार्थ - इस गाथा में पल्योपम के भेद, उनका स्वरूप और उनके उपयोग करने का संक्षेप से निर्देश किया है ।
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लोक में जो वस्तुयें सरलता से गिनी जा सकती हैं और जहाँ तक गणित विधि का क्षेत्र है, वहां तक तो गणना करना सरल होता लेकिन उसके आगे उपमा प्रमाण को प्रवृत्ति होती है । जैसे कि तिल, सरसों, गेहूँ आदि धान्य गिने नहीं जा सकते, अतः उन्हें तोल या माप वगैरह से आंक लेते हैं । इसी प्रकार समय की जो अवधि वर्षों के रूप में गिनी जा सकती है, उसकी तो गणना की जाती है और उसके लिये शास्त्रों में पूर्वांग, पूर्व आदि की संज्ञायें मानी हैं, किन्तु इसके बाद भी समय की अवधि इतनी लम्बी है कि उसकी गणना वर्षों में नहीं की जा सकती है । अतः उसके लिये उपमाप्रमाण का सहारा लिया जाता है । उस उपमाप्रमाण के दो भेद हैंपत्योपम' और सागरोपम ।
समय की जिस लम्बी अवधि को पल्य की उपमा दी जाती है, उसे
अनाज वगैरह भरने के गोलाकार स्थान को पल्य कहते हैं ।
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