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________________ गाथा ७ अध्र वोदय प्रकृतियों के नाम उक्त प्रकृतियों के अध्रुवोदय होने का कारण बन्ध एवं उदय प्रकृतियों में अनादि, अनन्त आदि भंगों का स्पष्टीकरण ( ३१ ) ह गाथा 5, ध्रुव और अध्रुव सत्ता वाली प्रकृतियों के नाम ध्रुव और अध्रुव सत्ता प्रकृतियों के कथन करने वाली संज्ञाओं का विवरण ध्रुव और अध्रुव सत्ता प्रकृतियों की संख्या अल्पाधिक होने का कारण १३० प्रकृतियों के ध्रुव सत्ता वाली होने का कारण २८ प्रकृतियों के अध्र व सत्ता वाली होने का स्पष्टीकरण गाथा १०, ११, १२ गुणस्थानों में मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति की सत्ता का विचार मिश्र मोहनीय और अनन्तानुबंधी कषाय की सत्ता का नियम आहारक सप्तक और तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता का नियम मिथ्यात्व आदि पन्द्रह प्रकृतियों की सत्ता का गुणस्थानों में विचार करने का कारण गाथा १३, १४ सर्वघातिनी, देशघातिनी और अघातिनी प्रकृतियाँ प्रकृतियों के घाति और अघाति मानने का कारण सर्वघातिनी प्रकृतियाँ कौन-कौनसी और क्यों ? देशघातिनी प्रकृतियाँ कौन-कौनसी हैं और क्यों ? सर्वघाति और देशघाति प्रकृतियों का विशेष स्पष्टीकरण Jain Education International २६-३६ २६ ३० For Private & Personal Use Only ३१ ३६-४१ ३७ ३८ ३६ ४० ४१ ४२-५१ ४३ ४६ ४८ ५१ ५२-६२ ५३ ५३ ५४ ५६ ५६ www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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