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________________ पंचम कर्मग्रन्थ ३०३ होती है । अतः स्थिति का घात कर देने से जो कर्मदलिक बहुत समय बाद उदय में आते हैं वे तुरन्त ही उदय में आने योग्य हो जाते हैं । जिन कर्मदलिकों की स्थिति कम हो जाती है उनमें से प्रति समय असंख्यातगुणे, असंख्यातगुणे दलिक ग्रहण करके उदय समय से लेकर ऊपर की ओर स्थापित कर दिये जाते हैं । कर्मदलिकों के निक्षेप करने का क्रम इस प्रकार होता है कि ऊपर की स्थिति से कर्मदलिकों को ग्रहण करके उनमें से उदय समय में थोड़े दलिकों का निक्षेप होता है, दूसरे समय में उससे असंख्यातगुणे दलिकों का दलिकों का निक्षेपण होता है । इसी प्रकार अन्तर्मुहूर्त काल के अन्तिम समय तक प्रतिसमय असंख्यातगुणे, असंख्यातगुणे दलिकों का निक्षेपण किया जाता है ।' अर्थात् पहले समय में जो दलिक ग्रहण किये जाते १ कर्म प्रकृति ( उपशमनाकरण ) की १५वीं गाथा, उसकी प्राचीन चूर्णि तथा पंचसंग्रह में भी इसी प्रकार गुणश्रेणि का स्वरूप आदि बतलाया है । जो इस प्रकार है गुणसेढी निक्खेवो समये समये असंखगुणणाए । अद्धादुगाईरितो सेसे सेसे य निक्खेवो ॥ - कर्मप्रकृति उपशमनाकरण, गा० १५ प्रतिसमय असंख्यातगुणे, असंख्यातगुणे दलिकों के निक्षेपण करने को गुणश्रेणि कहते हैं । उसका काल अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण के काल से कुछ अधिक है । इस काल में से ज्यों-ज्यों समय बीतता जाता है त्यों-त्यों ऊपर के शेष समयों में ही दलिकों का निक्षेपण किया जाता है । उवरिल्लाओ द्वितिउ पोग्गले घेत्तूण उदयसमये थोवा पक्खिवति, वितिसमये असंखेज्जगुणा एवं जाव अन्तो मुहुत्त । - कर्मप्रकृति चूर्णि घाइ ठिइओ दलियं घेत्तु घेत्तु असंखणगुणाए । साहियदुकरणकाले उदयाइ स्यइ गुणसेढि || पंचसंग्रह ७४६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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