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को अग्नि पर पकाने से सेर का आधा सेर रह जाता है तो वह कटुकतर हो जाता है, यह अवस्था तीव्रतर है | सेर का तिहाई रहने पर कटुकतम हो जाता है, यह तीव्रतम अवस्था है और जब सेर का पाव भर रह जाता है जो अत्यन्त कटुक है, यह अत्यन्त तीव्र अवस्था होती है । यह अशुभ प्रकृतियों के तीव्र रस (अनुभाग ) की चार अवस्थाओं का दृष्टान्त है । शुभ प्रकृतियों के तीव्र रस की चार अवस्थाओं का दृष्टान्त इस प्रकार है - जैसे ईख के पेरने पर जो स्वाभाविक रस निकलता है, वह स्वभाव से मधुर होता है । उस रस को आग पर पका कर सेर का आधा सेर कर लिया जाता है तो वह मधुरतर हो जाता है और सेर का एक तिहाई रहने पर मधुरतम और सेर का पाव भर रहने पर अत्यन्त मधुर हो जाता है । इस प्रकार तीव्र रस की चार अवस्थाओं को समझना चाहिये ।
अब मंद रस की चार अवस्थाओं को स्पष्ट करते हैं । जैसे नीम के कटुक रस या ईख के मधुर रस में एक चुल्लू पानी डाल देने पर वह मंद हो जाता है । एक गिलास पानी डालने पर मंदतर, एक लोटा पानी डालने पर मन्दतम तथा एक घड़ा पानी डालने पर अत्यन्त मंद हो जाता है । इसी प्रकार अशुभ और शुभ प्रकृतियों के मंद रस की मंद, मंदतर, मन्दतम और अत्यन्त मंद अवस्थायें समझना चाहिये ।
शतक
इस तीव्रता और मंदता का कारण कषाय की तीव्रता और मंदता है | तीव्र कषाय से अशुभ प्रकृतियों में तीव्र और शुभ प्रकृतियों में मंद अनुभाग बंध होता है और मंद कषाय से अशुभ प्रकृतियों में मंद और शुभ प्रकृतियों में तीव्र अनुभाग बंध होता है । अर्थात् संक्लेश परिणामों की वृद्धि और विशुद्ध परिणामों की हानि से अशुभ प्रकृतियों का तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम और अत्यन्त तीव्र तथा शुभ प्रकृतियों का मंद, मंदतर, मंदतम और अत्यन्त मंद अनुभाग बंध होता है और विशुद्ध परिणामों की वृद्धि तथा सक्लेश परिणामों की हानि से शुभ प्रकृतियों
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