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________________ पंचम कर्मग्रन्थ २१३ किये । इन सब कालों को जोड़ने से मनुष्य भव सहित चार पल्य अधिक २२ + ३१ +६६+६६ = १८५ सागर उत्कृष्ट अबन्धकाल होता है । " तीसरे भाग में ग्रहण की गई २५ प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं - ऋषभनाराच, नाराच अर्धनाराच, कीलिका, सेवार्त संहनन, न्यग्रोध, सादि, वामन, कुब्ज, हुण्ड संस्थान, अशुभ विहायोगति, अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व, दुर्भाग, दुःस्वर, अनादेय, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानद्धि, नीच गोत्र, नपुंसकवेद, स्त्रीवेद | इन पच्चीस प्रकृतियों का अबन्धकाल मनुष्यभव सहित १३२ सागर है । जो इस प्रकार जानना चाहिए कि कोई जीव महाव्रत धारण कर मरकर दो बार विजयादिक में उत्पन्न हुआ और इस प्रकार सम्यक्त्व का उत्कृष्ट काल ६६ सागर पूर्ण किया । पुनः मनुष्यभव में अन्तर्मुहूर्त के लिये मिश्र गुणस्थान में आकर और पुनः सम्यक्त्व प्राप्त करके तीन बार अच्युत स्वर्ग में जन्म लेकर दूसरी बार सम्यक्त्व का काल ६६ सागर पूर्ण किया । इस प्रकार ६६ + ६६ - १३२ हुए । इसीलिये उक्त पच्चीस प्रकृतियों का उत्कृष्ट अबन्धकाल मनुष्यभव सहित १३२ सागर होता है । इस प्रकार से उक्त इकतालीस प्रकृतियों का उत्कृष्ट अबन्धकाल बतलाकर अब आगे यह बतलाते हैं कि उक्त प्रकृतियों का उत्कृष्ट १ छट्टीए नेरइओ भवपच्चयओ उ अयर देसविरओ य भविडं पलियचउक्कं पुब्वत्तकालजोगो पंचासीय सयं आयवथावरच उविगलतियगए गिदिय २ पणवीसाए अबंधो उक्कोसो होइ सम्मसीसजुए। बत्तीस सयमयरा, दो विजए अच्चुए तिभवा ॥ बावीसं । पढमकप्पे । Jain Education International सचउपल्लं । अबंध || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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