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१६.
शतक
शब्दार्थ-जइलहुबंधो-साधु का जघन्य स्थितिबंध, वायरपज्ज-बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय, असंखगुण-असंख्यात गुणा, सुहुमपज्ज - सूक्ष्म पर्याप्त एकेन्द्रिय का, .हिंगो-विशेषाधिक, एसि-इनके (बादर सूक्ष्म एकेन्द्रिय के), अपज्जाण-अपर्याप्त का, लहू-जघन्य स्थितिबंध, सुहमेअरअपजपज्ज गुरू-सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट स्थितिबंध ।
लहु-जघन्य स्थितिबन्ध, बिय-द्वीन्द्रिय, पज्जअपज्जेपर्याप्त अपर्याप्त में, अपजेयर-अपर्याप्त और इतर-पर्याप्त, बियगुरू-द्वीन्द्रिय का उत्कृष्ट, हिगो अधिक, एवं-इस प्रकार से, तिचउअसन्निसु--त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय में, नवरं-इतना विशेष, संखगुणो–संख्यात गुणा, बियअमणपज्जेद्वीन्द्रिय पर्याप्त और असंज्ञी पर्याप्त में ।
तो- उसकी अपेक्षा, जइजिट्टोबंधो- साधु का उत्कृष्ट स्थितिबंध, संखगुणो-संख्यात गुणा, देसविरयहस्स-देशविरति का जघन्य, इयरो उत्कृष्ट स्थितिबंध, सम्मचउ-सम्यग्दृष्टि के चार प्रकार के स्थितिबंध, सन्निचउरो-संज्ञी पंचेन्दिय मिथ्यादृष्टि के चार, ठिइबंधा--स्थितिबन्ध, अणुकम- अनुक्रम से, संखगुणा- संख्यात गुणा।
गाथार्थ—साधु का जघन्य स्थितिबंध सबसे अल्प होता है । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य स्थितिबंध उससे असंख्यात गुणा और सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त का उससे विशेषाधिक होता है। इनके (बादर, सूक्ष्म एकेन्द्रिय के) अपर्याप्त का जघन्य स्थितिबंध उससे अधिक होता है। उसकी अपेक्षा सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट स्थितिबंध अनुक्रम से विशेषाधिक होता है।
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