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शतक
संज्वलन लोभ का जघन्य स्थितिबंध नौवें गुणस्थान में और पांच अंतराय, पांच ज्ञानावरण और चार दर्शनावरण का बंधविच्छेद दसवें गुणस्थान के अन्तिम समय में होता है तथा यशःकीर्ति नामकर्म व उच्चगोत्र का भी बंधविच्छेद दसवें गुणस्थान के अन्तिम समय में होता है । तभी उनका जघन्य स्थितिबंध समझना चाहिये । ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म की जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त प्रमाण तथा नाम, गोत्र को जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त प्रमाण है। साता वेदनीय की जघन्य स्थिति जो बारह मुहूर्त बताई है वह जघन्य स्थिति सकषाय जीवों की अपेक्षा से समझना चाहिए। क्योंकि यह पहले बतलाया जा चुका है कि अकषाय जीवों की अपेक्षा से तो उपशान्तमोह आदि गुणस्थानों में उसको जघन्य स्थिति दो समय है। साता वेदनीय की बारह मुहर्त की जघन्य स्थिति दसवें गुणस्थान के अंतिम समय में होती है।
दो इगमासो पक्खो संजलणतिगे पुमट्टवरिसाणि । सेसाणुक्कोसाओ मिच्छत्तठिईइ ज लद्धं ॥३६॥
शब्दार्थ-दोइगमासो- दो मास और एक मास, पक्खो-पक्ष (पखवाड़ा), संजलणतिगे--संज्वलनत्रिक की. पु-पुरुषवेद, अट्ठ-आठ, बरिसाणि वर्ष, सेसाण- शेष प्रकृतियों की, उक्कोसामो-अपनी उत्कृष्ट स्थिति में, मिच्छत्तठिईइ-मिथ्यात्व की स्थिति का भाग देने से, जं - जो, लद्ध-लब्ध प्राप्त हो। गाथार्थ-संज्वलनत्रिक की जघन्य स्थिति क्रम से दो मास, एक मास और एक पक्ष है । पुरुष वेद की आठ वर्ष तथा शेष प्रकृतियों की जघन्य स्थिति उनकी उत्कृष्ट स्थिति में मिथ्यात्व मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति के द्वारा भाग देने पर प्राप्त लब्ध के बराबर है।
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