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________________ शतक १४२ परभव की आयु का बंध करते हैं ।' १ गो० कर्मकांड में भी आयुबंध के संबंध में सामान्यतया यही विचार प्रगट किये हैं किन्तु देव नारक और भोगभूमिजों की छह माह प्रमाण अबाधा को लेकर उसमें मतभेद है कि छह मास में आयु का बंध नहीं होता किन्तु उसके त्रिभाग में आयुबंध होता है और उस विभाग में भी यदि आयु न बंधे तो छह मास के नौवें भाग में आयु बंध होता है । इसका सारांश यह है कि जैसे कर्मभूमिज मनुष्य और तियं चों में अपनीअपनी पूरी आयु के त्रिभाग में परभव को आयु का बंध होता है, वैसे ही देव, नारक और भोगभूमिज मनुष्य, तिर्यंचों के छह माह के विभाग में आयुबंध होता है । दिगम्बर संप्रदाय में सामान्यतः यही मत मान्य है। भोगभूमिजों को लेकर मतभेद है । किन्ही का मत है कि उनमें नौ मास आयु शेष रहने पर उसके त्रिभाग में परभव की आयु का बंध होता है । इसके सिवाय एक मतभेद यह भी है कि यदि आठों विभागों में आयु बंध न हो तो अनुभूयमान आयु का एक अन्त मुहूर्त काल बाकी रह जाने पर परभव की आयु नियम से बंध जाती है । यह सर्वमान्य मत है किन्तु किन्ही-किन्ही के मत से अनुभूयमान आयु का काल आलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण बाकी रहने पर परभव की आयु का बंध नियम से होता है। गो० कर्मकांड में गा० १२८ से १३३ तक कर्मग्रन्थ के समान ही उत्तर प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबंध का कथन किया है। लेकिन एक बात उल्लेखनीय है कि उसमें वर्णादि चतुष्क की स्थिति बीसकोड़ाकोड़ी सागरोपम की बतलाई है और कर्मग्रंथ में उसके अवान्तर भेदों को लेकर दस कोडाकोड़ी सागरोपम से लेकर बीस कोड़ाकोडी सागरोपम तक बताई है । इस अन्तर का कारण यह है कि कर्म ग्रंथ में चसंग्रह के आधार से वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के अवान्तर भेदों की उत्कृष्ट स्थिति का कथन किया है । वैसे तो बंध की अपेक्षा से वर्णादि चार ही हैं। स्वोपज्ञ टीका में ग्रंथकार ने स्वयं इसका स्पष्टीकरण किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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