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पंचम कर्मग्रन्थ
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पांच अन्तराय, पांच ज्ञानावरण और नौ दर्शनावरण कर्मों में से प्रत्येक की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोड़ी सागरोपम की तथा एक कोडाकोड़ी सागरोपम की स्थिति में एक सौ वर्ष का अबाघाकाल होने का संकेत पहले कर आये हैं । अतः उनका अबाधाकाल ३० X १०० तीन हजार वर्ष होता है । इसी प्रकार इसी अनुपात से अन्य प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति के अनुसार उन-उनका उत्कृष्ट अबाधाकाल समझना चाहिये कि सूक्ष्मत्रिक और विकलत्रिक का अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष, समचतुरस्र संस्थान और वज्रऋषभनाराच संहनन का अबाधाकाल एक हजार वर्ष, न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान और ऋषभनाराच संहनन का अबाधाकाल बारह सौ वर्ष, स्वाति संस्थान और नाराच संहनन का अबाधाकाल चौदह सौ वर्ष, कुब्ज संस्थान और अर्धनाराच संहनन का अबाधाकाल सोलह सौ वर्ष, वामन संस्थान और कीलिक संहनन का अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष, हुण्ड संस्थान और सेवार्त संहनन का अबाधाकाल दो हजार वर्ष, अनंतानुबन्धी क्रोध आदि, सोलह कषायों का अबाधाकाल चार हजार वर्ष, मृदु, लघु, स्निग्ध, उष्ण स्पर्श, सुगन्ध, श्वेतवर्ण और मधुर रस का एक हजार वर्ष, पीत वर्ण और अम्ल रस का अबाधाकाल साढ़े बारह सौ वर्ष, रक्त वर्ण और कषाय रस का पन्द्रह सौ वर्ष, नील वर्ण और कटुक रस का साढ़े सत्रह सौ वर्ष, कृष्ण वर्ण और तिक्त रस का दो हजार वर्ष, शुभ विहायोगति, उच्च गोत्र, देवद्विक, स्थिरषट्क, पुरुष वेद, हास्य और रति का एक हजार वर्ष, मिथ्यात्व का सात हजार वर्ष, मनुष्यद्विक, स्त्रीवेद, साता . वेदनीय का अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष, भय, जुगुप्सा, अरति, शोक, वैक्रिय द्विक, तिर्यंचद्विक, औदारिकद्विक, नरकद्विक, नीच गोत्र, तैजसपंचक, अस्थिरषट्क, त्रसचतुष्क, स्थावर, एकेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, नपुंसक वेद, अशुभ विहायोगति, उच्छ्वासचतुष्क, गुरु, कर्कश, रूक्ष, शीतस्पर्श और दुर्गन्ध का अबाधाकाल दो हजार वर्ष का जानना चाहिए ।
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