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________________ परम गुरुभक्त धर्मप्रेमी सेठ श्री मिश्रीलाल जी प्रेमराज जी सा, लुकड़ भगवान महावीर का वचन है " सोही उज्जुभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ" सरलता से हृदय की शुद्धि होती है और शुद्ध हृदय में ही धर्म का निवास होता है । धर्म का वृक्ष सरलता की भूमि पर उगता है । सेवा, संयम, दान के जल से बढ़ता है, और फिर उस पर सुख, यश, आनन्द के फल लगते हैं । सुप्रसिद्ध बगडीनगर ( मारवाड़) निवासी सेठ - श्रीमान मिश्री लाल जी सा. लुंकड का जीवन भी सरलता, सेवा, गुरुभक्ति, संयम, तप, दान आदि गुणों से विभूषित है। आपका मन बहुत ही उदार व दयालु है । जीवदया तथा समाजसेवा के लिए सदा ही खुले हाथों से आपने लक्ष्मी का सदुपयोग करते रहे हैं । आपकी धर्मशीला सहधर्मिणी श्रीमती अंचीबाई भी आपके समान ही देव गुरु-धर्म की उपासिका दान-शील तप-भाव की आराधिका, सुश्राविका है। आपके धर्ममय संस्कार ही आपके सम्पूर्ण परिवार आये हैं । आप गुरुदेव मरुधर केसरी श्री मिश्रीमल जी महाराज के प्रति अतीव श्रद्धावान हैं । आपका सम्पूर्ण परिवार आज भी स्व० गुरुदेवश्री के प्रति पूर्ण भक्तिमान है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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