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________________ ६२ दसवें गुणस्थान से गिरकर जीव नौवें गुणस्थान में ही आता है, जिससे तीसरा भूयस्कार बन्ध भी नहीं बन सकता है । उक्त कथन का सारांश यह है कि ऊपर के गुणस्थान से पतन एकदम न होकर क्रमशः ग्यारहवें, दसवें, नौवें आदि में होता है, अतः पतन की अपेक्षा एक को वांधकर सात का बन्ध करना, एक को बांधकर आठ कर्मों का बन्ध करना, छह को बांधकर आठ कर्मों का बन्ध करना यह तीनों भूयस्कार बंध नहीं बनते हैं। अब रहा मरण की अपेक्षा आदि के दो भूयस्कार बंधों का हो सकना । सो ग्यारहवें गुणस्थान में मरण करके जीव देवगति में ही जन्म लेता है और वहां वह सात ही कर्मों का बंध करता है, क्योंकि देवगति में छह मास की आयु शेष रहने पर ही आयु का बन्ध होता है। अतः मरण की अपेक्षा से एक का बन्ध करके आठ का बन्ध कर सकना संभव नहीं है। इसलिये यह भूयस्कार बंध नहीं हो सकता है। किन्तु एक को बांधकर सात का बंध रूप भूयस्कार संभव है, लेकिन उसके बारे में यह ज्ञातव्य है कि जो एक को बांधकर सात कर्मों का बन्ध करता है तो बन्धस्थान सात का ही रहता है, इसलिये उसको जुदा नहीं गिना जाता है। यदि बंधस्थान का भेद होता तो १ बद्धाऊ पडिवन्नो सेढिगओ व पसंतमोहो वा । जइ कुणइ कोइ कालं वच्चइ तोऽणुत्तरसुरेसु ।। -विशेषावश्यक भाष्य १३११ यदि कोई बद्धायु जीव उपशम श्रेणि चढ़ता है और श्रेणि के मध्य के किसी गुणस्थान में अथवा ग्यारहवें गुणस्थान में यदि मरण करता है तो नियम से अनुत्तरवासी देवों में उत्पन्न होता है । २ तेनो उत्तर कहे छे के जो पण एक बंध थी सातकर्म बंध करे तो पण बंधस्थानक सातनु एकज छे ते भणी जुदो न लेख्यो, बन्धस्थानकनो भेद होय तो बुदो भूयस्कार लेखवाय । -पंचम कर्मग्रन्थ का टब्बा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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