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________________ पंचम कर्मग्रन्थ सर्वघाती और देशघाती प्रकृतियों का विशेष स्पष्टीकरण सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन और चारित्र का सर्वथा घात करने वाली होने से केवलज्ञानावरण आदि बीस प्रकृतियां सर्वघाती और शेष पच्चीस प्रकृतियां ज्ञानादि गुणों का देशघात करने वाली होने से देशघाती हैं।' केवलज्ञानावरण आदि बीस प्रकृतियां अपने द्वारा ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व और चारित्र गुण का सर्वथा घात करती हैं। मिथ्यात्व और अनन्तानुबंधी कषाय चतुष्क सम्यक्त्व का सर्वथा घात करती हैं। क्योंकि उनके उदय होने से कोई भी सम्यक्त्व प्राप्त नहीं होता है। केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण अनुक्रम से केवलज्ञान और केवलदर्शन को पूर्ण रूप से आवृत करते हैं। निद्रा, निद्रा-निद्रा आदि पांच निद्रायें दर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त दर्शनलब्धि को सर्वथा आच्छादित करती हैं तथा अप्रत्याख्यानावरण एवं प्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क अनुक्रम से देशचारित्र और सकलचारित्र का सर्वथा घात करती हैं। __इस प्रकार उक्त सभी प्रकृतियां सम्यक्त्व आदि गुणों का सर्वथा घात करने वाली होने से सर्वघाती कहलाती हैं। उक्त सर्वघाती बीस प्रकृतियों के सिवाय चार घाति कर्मों की मतिज्ञानावरण आदि पच्चीस प्रकृतियां ज्ञानादि गुणों के एकदेश का घात करने वाली होने से देशघाती हैं। जिसका स्पष्टीकरण यहां किया जाता है। ___केवलज्ञानावरण कर्म ज्ञानस्वरूप आत्मगृण को पूर्ण रूप से आवृत करने की प्रवृत्ति करें तो भी वह जीव के स्वभाव को सर्वथा ढकने में सम्मत्तनाणदंमण चरित्तघाइत्तणाउ घाईओ। तस्सेस देमघा इनणाउ पुण देसघाइओ ॥ __ - पंचसंग्रह ३।१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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