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चौथा कर्मग्रन्थ
उवसमखयमीसोदय,-परिणामा दुनवट्ठारइगवीसा। तिय भेय संनिवाइय, संमं चरणं पढम भावे।।६४।। बीए केवलजुयलं, संमं दाणाइलद्धि पण चरणं। तइए सेसुवओगा, पण लद्धी सम्मविरइदुगं।।६५।।
अन्नाणमसिद्धत्ता,-संजमलेसाकसायगइवेया। मिच्छं तुरिए भव्वा,- भव्वत्तजियत्त परिणामे।।६६।। चउ चउगईसु मीसग,-परिणामुदएहिं चउ सखइएहिं। उवसमजुएहिं वा चउ, केवलि परिणामुदयखइए।।६७।। खयपरिणामे सिद्धा, नराण पणजोगुवसमसेढीए। इय पनर संनिवाइय,-भेया वीसं असंभविणो।।६८।। मोहेव समो मीसो, चउघाइसु अट्ठकम्मसु च सेसा। धम्माइ पारिणामिय,-भावे खंधा उदइए वि।।६९।। संमाइचउसु तिग चउ, भावा चउ पणुवसामगुवसंते। चउ खीणापुव्व तिन्नि, से सगुणट्ठाणगेगजिए।।७०।। संखिज्जेगमसंखं, परित्तजुत्तनियपयजुयं तिविहं। एवमणंतं पि तिहा, जहन्नमज्झुक्कमा सव्वे।।७१।। लहुसंखिज्जं दुच्चिए, अओ पर मज्झिमं तु जा गुरु। जंबूद्दीवपमाणय,-चउपल्लपरुवणाइ इम।।७२।। पल्लाणवट्टियसला,-ग पडिसलागामहासलागक्खा। जोयणसहसोगाढा, सवेइयंता मसिहभरिया।।७३।। ता दीवुदहिसु इक्कि,-क्कसरिसवं खिविय निट्ठिए पढमे। पढमं व तदन्तं चिय, पुण भरिए तंमि तह खीणे।।७४।। खिप्पइ सलागपल्ले,-गु सरिसवो इय सलागखवणेणं। पुन्नो बीयो य तओ, पुट्विं पि व तमि उद्धरिए।।७५।। खीणे सलाग तइए, एवं पढमेहिं बीययं भरसु। तेहिं तइयं तेहि य, तुरियं जा किर फुडा चउरो।।७६।।
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