________________
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
गाथ ३२,४४
२२
५३
५५,५७
१३, १७, २४ - २,२९,३३,४४,
४६, ४८- २,५५,५९,६१,६३,
६४,६७,६९
५६.
६०,६९
९,१०,१३,२२,३४, ७५, ७६,
७७,८२
प्राकृत
मिच्छदुग
मिच्छतिग
मिच्छपश्चइय मिस्स (मीस) युग मीस ( - ग X ६७-८,
९०-२०, ९१ २२,
.९३ - १,१९७-१,
२०५-२)
मुत्तु
मोह
य
संस्कृत
मिथ्यात्वद्विक
मिथ्यात्वत्रिक
मिथ्यात्वप्रत्ययक
मिश्राद्विक
मिश्र (-क)
मुक्त्वा
मोह
च
य
हिन्दी
'मिथ्यात्व और 'सास्वादन' नामक पहला और दूसरा
गुणस्थान।
'मिथ्यात्व' 'सास्वादन' और मिश्रदृष्टि' नामक तीन
गुणस्थान।
'मिथ्यात्व' से होनेवाला बन्धविशेष।
'औदारिकमिश्र' और 'वैक्रियमिश्र' नामक योगविशेष । तीसरा गुणस्थान, योगविशेष, अज्ञान सम्यक्त्वविशेष और भावविशेष ।
छोड़कर।
'मोहनीय' नामक कर्मविशेष ।
और।
J
20
चौथा कर्मग्रन्थ