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हिन्दी
गाथाङ्क ९,३०,३४-२,४९,३३,४८
प्राकृत नाणतिग
संस्कृत ज्ञानत्रिक
२२४
८५ ७४
३३
'मतिज्ञान', श्रुतज्ञान' और 'अवधिज्ञान' नामक तीन ज्ञानविशेष। . 'निगोद' नामक जीव-विशेष। पूरा हो जाना। अपने दो। अपने पद से युक्त। 'नरकगति' नामक गतिविशेष।
निगोदजीव निष्ठित निजद्विक निजपदयुत निरयगति
निगोयजीव निट्टिय नियदुग नियपयजुय नि(ना)रय(-गइ) (५१,१८) नीला(६४-१)
७१ १०,३०,३६,३७
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१३
नीला
'नीला' नामक लेश्या विशेष।
चौथा कर्मग्रन्थ
७९
पच्छा
४३ .
पश्चात् पश्चानुपूर्वी पर्याप्त |
फिर। पीछे के क्रम से। 'पर्याप्त' नामक जीवविशेष।
२,३,५-२,६,८,१७-२,४५
पच्छाणुपुव्वि पज्ज(ज)-त) (११-३) पज्जियर पडिसलागा (२१२-१६)
१७
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पर्याप्तेतर प्रतिशलाका
'पर्याप्त' और 'अपर्याप्त' नामक जीव विशेष। 'प्रतिशलाका' नामक पल्यविशेष।
७३