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गाथाङ्क ३०
प्राकृत दुकेवल
संस्कृत द्विकेवल
५४,५७
दु(-ग)बीस दुच्चिय
७२
हिन्दी 'केवलज्ञान' और 'केवलदर्शन' नामक उपयोग विशेष। बाईस। दो ही। 'औदारिकमिश्र' और वैक्रियमिश्र'-नामक योगविशेष। दो तरह से। 'चक्षुर्दर्शन' और 'अचक्षुर्दर्शन' नामक दर्शनविशेष। देवगति। देवेन्द्रसूरि (इस ग्रन्थ के कर्ता)।
५६
४५ ३२,४८
द्वाविंशति द्वावेव द्विमिश्र द्विविध द्विदर्श(-न)
दुमिस्स दुविह
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३७
दुदंस(-ण) देव देविंदसूरि
देव
देवेन्द्रसूरि
८६ १२,१७,२२,२९,३३,४२,४६
४८,५६,६३
चौथा कर्मग्रन्थ
देश
'देशविरति' नामक पाँचवाँ गुणस्थान
'चक्षुर्दशन' नामक उपयोगविशेष।
देस(-जय) (६१-२३) नयण
नयन दो
द्वि दंस(-ण)(४९-२०) दर्शन दंसणदुग दर्शनद्विक दंस(-ण)तिरा दर्शनत्रिक
दो।
४२ २१,३५,४३-२,६२ ६,९,३०,३४,४८-२
३२ ३३,४८
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'दर्शन' नामक उपयोग विशेष।। 'चक्षुदर्शन' और 'अचक्षुर्दर्शन' नामक दर्शन-विशेष। 'चक्षुर्दर्शन' और 'अचक्षुर्दर्शन' और अवधिदर्शन' नामक दर्शन विशेष।