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________________ मार्गणास्थान - अधिकार ९१ अर्थ- मनोयोग वाले अन्य योगवालों से थोड़े हैं। वचनयोग वाले उनसे असंख्यातगुण और आययोग वाले वचनयोग वालों से अनन्तगुण हैं। पुरुष सबसे थोड़े हैं। स्त्रियाँ पुरुषों से संख्यातगुण और नपुंसक स्त्रियों से अनन्तगुण हैं ।। ३९॥ भावार्थ- मनोयोग वाले अन्य योग वालों से इसलिये थोड़े माने गये हैं। कि मनोयोग संज्ञी जीवों में ही पाया जाता है और संज्ञी जीव अन्य सब जीवों से अल्प ही हैं। वचनयोग वाले मनोयोग वालों से असंख्यगुण कहे गये हैं। इसका कारण यह है कि द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञि - पञ्चेन्द्रिय और संज्ञिपञ्चेन्द्रिय, ये सभी वचनयोग वाले हैं। काययोग वाले वचनयोगियों से अनन्तगुण इस अभिप्राय से कहे गये हैं कि मनोयोगी तथा वचनयोगी के अतिरिक्त एकेन्द्रिय भी काययोग वाले हैं। तिर्यञ्च-स्त्रियाँ तिर्यञ्च पुरुषों से तीन गुनी और तीन अधिक होती हैं। मनुष्यस्त्रियाँ मनुष्य जाति के पुरुषों से सताईस गुनी और सत्ताईस अधिक होती हैं। देवियाँ देवों से बत्तीस गुनी और बत्तीस अधिक होती हैं। इसी कारण पुरुषों से स्त्रियाँ संख्यातगुण मानी हुई हैं। एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय पर्यन्त सब जीव, असंज्ञि-पञ्चेन्द्रिय और नारक, ये सब नपुंसक ही हैं। इसी से नपुंसक स्त्रियों की अपेक्षा अनन्तगुण माने गए हैं । । ३९ ॥ कषाय, ज्ञान, संयम और दर्शन मार्गणाओं का अल्प - बहुत्व (तीन गाथाओं से) माणी कोही माई, लोही अहिय मणनाणिनो थोवा । ओहि असंखा मइसुय, अहियसम असंख विभंगा ।। ४० ।। मानिनः क्रोधिनो मायिनो, लोभिनोऽधिका मनोज्ञाननः स्तोकाः । अवधयोऽसंख्या मतिश्रुता, अधिकास्समा असङ्ख्या विभङ्गाः । । ४०॥ अर्थ-म - मानकषाय वाले अन्य कषायवालों से थोड़े हैं। क्रोधी मानियों से विशेषाधिक हैं। मायावी क्रोधियों से विशेषाधिक हैं। लोभी मायावियों से विशेषाधिक हैं। १. देखिये, पञ्चसंग्रह द्वा. २, गा. ६५ २. देखिये, पञ्चसंग्रह द्वा. २, गा. ६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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