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मार्गणास्थान - अधिकार
(मनुष्यों, नारकों, देवों और तिर्यञ्चों का परस्पर अल्प-बहुत्व, ऊपर कहा गया है, उसे ठीक-ठीक समझने के लिये मनुष्य आदि की संख्या शास्त्रोक्त रीति के अनुसार दिखायी जाती है)—
मनुष्य, जघन्य उन्तीस अङ्क-प्रमाण और उत्कृष्ट, असंख्यात होते हैं।
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(क) जघन्य – मनुष्यों के गर्भज और संमूच्छिम, ये दो भेद हैं। इनमें से संमूच्छिम मनुष्य किसी समय बिलकुल ही नहीं रहते, केवल गर्भज रहते हैं। इसका कारण यह है कि संमूच्छिम मनुष्यों की आयु, अन्तर्मुहूर्त -प्रमाण होती है । जिस समय, संमूच्छिम मनुष्यों की उत्पत्ति में एक अन्तर्मुहूर्त से अधिक समय का अन्तर पड़ जाता है, उस समय, पहले के उत्पन्न हुए सभी संमूच्छिम मनुष्य मर चुकते हैं। इस प्रकार नये संमूच्छिम मनुष्यों की उत्पत्ति न होने के समय तथा पहले उत्पन्न हुए सभी संमूच्छिम मनुष्यों के मर चुकने पर, गर्भज मनुष्य ही रह जाते हैं, जो कम से कम नीचे लिखे उन्नीस अङ्को के बराबर होते हैं। इसलिये मनुष्यों की कम से कम यही संख्या हुई ।
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पाँचवें वर्ग के साथ छठे वर्ग को गुणने से जो उन्तीस अङ्क होते हैं, वे ही यहाँ लेने चाहिये। जैसे- २ को २के साथ गुणने से ४ होते हैं, यह पहला वर्ग। ४ के साथ ४ को गुणने से १६ होते हैं, यह दूसरा वर्ग । १६ को १६ से गुणने पर २५६ होते हैं, यह तीसरा वर्ग । २५६ का २५६ से गुणने पर ६५५३६ होते हैं, यह चौथा वर्ग । ६५५३६ को ६५५३६ से गुणने पर ४२९४९६७२९६ होते हैं, यह पाँचवाँ वर्ग। इसी पाँचवें वर्ग की संख्या को उसी संख्या के साथ गुणने से १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६ होते हैं, यह छठा वर्ग। इस छठे वर्ग की संख्या को उपर्युक्त पाँचवें वर्ग की संख्या से गुणने पर ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ होते हैं, ये उन्तीस अङ्क हुए। अथवा १ का दूना २, २ का दूना ४, इस तरह पूर्व - पूर्व संख्या को, उत्तरोत्तर छ्यानवें बार दूना करने से, वे ही उन्तीस अङ्क होते हैं।
१. अनुयोगद्वार, पृ. २०५ – २०९ / १ |
१. समान दो संख्या के गुणनफल को उस संख्या का वर्ग कहते हैं। जैसे—५ का वर्ग
२५।
२.
ये ही उन्तीस अङ्क, गर्भज मनुष्य की संख्या के लिये अक्षरों के संकेत द्वारा गोम्मटसार जीवकाण्ड की १५७वीं गाथा में बतलाये हैं।
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