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________________ ४२ कर्मग्रन्थभाग-१ कर्म और ८. उपघात नाम-कर्म। इन प्रकृतयों का अर्थ यहाँ इसलिये नहीं कहा गया है कि खुद ग्रन्थकार ही आगे कहने वाले हैं। 'त्रस दशक शब्द से जो प्रकृतियाँ ली जाती हैं उनको इस गाथा में कहते हैं।' तस बायर पज्जत्तं पत्तेय थिरं सुभं च सुभगं च । सुसराइज्ज जसं तसदसगं थावरदसं तु इमं ।। २६ ।। (तस) त्रस, (बायर) बादर, (पज्जत्तं) पर्याप्त, (थिरं) स्थिर, (सुभं) शुभ, (च) और (सुभगं) सुभग, (सुसराइज्ज) सुस्वर, आदेय और (जसं) यश:कीर्ति, ये प्रकृतियाँ (तस दसगं) त्रस-दशक कही जाती हैं। (थावरदसं तु) स्थावर-दशक (इम) यह जो कि आगे की गाथा में कहेंगे ॥२६॥ भावार्थ- यहाँ भी प्रत्येक-प्रकृति के साथ नाम को जोड़ना चाहिये; जैसे कि त्रसनाम, बादरनाम आदि। त्रस से लेकर यश:कीर्ति तक गिनती में दस प्रकृतियाँ हैं, इसलिए ये प्रकृतियाँ त्रसदशक कही जाती हैं, इसी प्रकार स्थावरदशक को भी समझना चाहिये; जिसे कि आगे की गाथा में कहने वाले हैं। त्रस दशक की प्रकृतियों के नाम हैं- १. त्रस नाम, २. बादर नाम, ३. पर्याप्त नाम, ४. प्रत्येक नाम, ५. स्थिर नाम, ६. शुभ नाम, ७. सुभग नाम, ८. सुस्वर नाम, ९. आदेय नाम और १०. यश:कीर्ति नाम। इन प्रकृतियों का स्वरूप भी आगे कहा जायगा। 'स्थावर-दशक शब्द से जो प्रकृतियाँ ली जाती हैं, उनको इस गाथा में कहते हैं।' थावर सुहुम अपज्जं साहारणअथिरअसुभदुभगाणि । दुस्सरऽणाइज्जाजसमिय नामे सेयरा बीसं ।। २७।। (थावर) स्थावर, (सुहुम) सूक्ष्म, (अपज्ज) अपर्याप्त, (साहारण) साधारण, (अथिर) अस्थिर, (असुभ) अशुभ, (दुभगाणि) दुर्भग, (दुस्सरऽणाइज्जाजसं) दुःस्वर, अनादेय और अयश:कीर्ति, (इय) इस प्रकार (नाम) नामकर्म में (सेयरा) इतर अर्थात् त्रसदशक के साथ स्थावर-दशक को मिलाने से (बीसं) बीस प्रकृतियाँ होती हैं ॥२७॥ भावार्थ-त्रस-दशक में जितनी प्रकृतियाँ हैं उनकी विरोधिनी प्रकृतियाँ स्थावर-दशक में हैं; जैसे कि सनाम से विपरीत स्थावरनाम, बादरनाम से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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