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कर्मग्रन्थभाग- १
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हैं, उसी प्रकार जीव जब समश्रेणी से जाने लगता है, तब आनुपूर्वी कर्म, उसे जहाँ उत्पन्न होना हो, वहाँ पहुँचा देता है।
१४. विहायोगतिनाम - जिस कर्म के उदय से जीव की चाल (चलना), हाथी या बैल की चाल के समान शुभ अथवा ऊँट या गधे की चाल के समान अशुभ होती है, उसे विहायोगति नामकर्म कहते हैं।
प्रश्न - विहायस् आकाश को कहते हैं वह सर्वत्र व्याप्त है उसको छोड़कर अन्यत्र गति हो ही नहीं सकती फिर विहायस् गति का विशेषण क्यों ?
उत्तर - विहायस् को विशेषण न कहकर सिर्फ गति कहेंगे तो नाम-कर्म की प्रथम प्रकृति का नाम भी गति होने के कारण पुनरुक्त दोष की शङ्का हो जाती इसलिए विहायस् विशेषण दिया गया है, जिससे जीव की चाल के अर्थ में गति शब्द को समझा जाय न कि देवगति, नारकगति आदि के अर्थ में। 'प्रत्येक प्रकृति के आठ भेद' पिण्डपयडित्ति
चउदस
परघाउस्सासआयवुज्जोयं । अट्ठ पत्तेया ।। २५ ।।
अगुरुलहुतित्थनिमिणोवघायमिय
(पिण्डपयडित्ति चउदस) इस प्रकार पूर्व गाथा में कही हुई प्रकृतियाँ, पिण्डप्रकृतियाँ कहलाती हैं और उनकी संख्या चौदह है। ( परघा ) पराघात, (उस्सास) उच्छ्वास, (आयुवुज्जोयं) आतप, उद्योत, (अगुरुलहु) अगुरुलघु, (तित्थ) तीर्थङ्कर, (निमिण) निर्माण और ( उवघायं) उपघात, ( इय) इस प्रकार (अट्ठ) आठ (पत्तेया) प्रत्येक प्रकृतियाँ हैं ॥ २५ ॥
भावार्थ- 'पिण्डपयडित्ति चउदस' इस वाक्य का सम्बन्ध चौबीसवीं गाथा के साथ है, उक्त गाथा में कही हुई गति, जाति आदि चौदह प्रकृतियों को पिण्डप्रकृति कहने का मतलब यह है कि उनमें से हर एक के भेद हैं; जैसे कि, गति नाम के चार भेद, जाति नाम के पाँच भेद इत्यादि । पिण्डित काअर्थात् समुदाय का ग्रहण होने से पिण्डप्रकृति कही जाती है ।
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प्रत्येक प्रकृति के आठ भेद हैं, उनके हर एक के साथ नाम शब्द को जोड़ना चाहिये; जैसे कि पराघात नाम, उच्छ्वास नाम आदि। प्रत्येक का मतलब एक-एक से है - अर्थात् इन आठों प्रकृतियों के हर एक के भेद नहीं हैं इसलिए ये प्रकृतियाँ, प्रत्येक प्रकृति, शब्द से कही जाती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं१. पराघात नाम-कर्म, २. उच्छ्वास नाम-कर्म, ३. आतप नाम-कर्म, ४. उद्योत नाम - कर्म, ५. अगुरुलघु नाम - कर्म, ६. तीर्थङ्कर नाम-कर्म, ७. निर्माण नाम
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