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________________ कर्मग्रन्थभाग-१ अनपवर्तनीय-जो आयु किसी भी कारण से कम न हो सके, अर्थात् जितने काल तक की पहले बाँधी गई है उतने काल तक भोगी जाये उस आयु को अनपवर्त्य आयु कहते हैं। देव, नारक, चरम शरीरी-अर्थात उसी शरीर से जो मोक्ष जाने वाले हैं वे, उत्तमपुरुष---अर्थात् तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि और जिनकी आय असंख्यात वर्षों की है ऐसे मनुष्य और तिर्यश्च-इनकी आय अनपवर्तनीय ही होती है, इनसे इतर जीवों की आयु का नियम नहीं है, किसी जीव की अपवर्तनीय और किसी की अनपवर्तनीय होती है। नाम-कर्म चित्रकार के समान है, जैसे चित्रकार नाना भाँति के मनुष्य, हाथी, घोड़े आदि को चित्रित करता है; ऐसे ही नाम-कर्म नाना भाँति के देव, मनुष्य, नारकों की रचना करता है। ___ नाम-कर्म की संख्या कई प्रकार से कही गई है; किसी अपेक्षा से उसके बयालीस (४२) भेद हैं, किसी अपेक्षा से तिरानवे (९३) भेद हैं, किसी अपेक्षा से एक सौ तीन (१०३) 'भेद हैं और किसी अपेक्षा से सढ़सठ (६७) भेद भी हैं। 'नाम-कर्म के ४२ भेदों को कहने के लिए १४ पिण्डप्रकृतियों को कहते हैं। गइजाइतणुउवंगा बंधणसंघायणाणि संघयणा । संठाणवण्णगंधरसफासअणुपुस्विविहगगई ।। २४।। (गइ) गति, (जाइ) जाति, (तणु) तनु, (उवंगा) उपाङ्ग, (बंधण) बन्धन, (संघायणणि) संघातन, (संघयणा) संहनन, (संठाण) संस्थान, (वण्ण) वर्ण, (गंध) गन्ध, (रस) रस, (फास) स्पर्श, (अणुपुव्वि) आनुपूर्वी और (विहगगई) विहायोगति, ये चौदह पिण्डप्रकृतियाँ हैं ।।२४॥ भावार्थ-नामकर्म की जो पिण्ड-प्रकृतियाँ हैं, उनके चौदह भेद हैं, प्रत्येक के साथ नाम शब्द को जोड़ देना चाहिये, जैसे कि गति के साथ नाम शब्द को जोड़ देने से गतिनाम, इसी प्रकार अन्य प्रकृतियों के साथ नाम शब्द को जोड़ देना चाहिये। पिण्डप्रकृति का अर्थ पच्चीसवीं गाथा में कहेंगे। १. गतिनाम-जिस कर्म के उदय से जीव, देव, नारक आदि अवस्थाओं को प्राप्त करता है, उसे गतिनाम-कर्म कहते हैं। २. जातिनाम-जिस कर्म के उदय से जीव एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय आदि कहा जाय, उसे जातिनाम-कर्म कहते हैं। ३. तनुनाम-जिस कर्म के उदय से जीव को औदारिक, वैक्रिय आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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