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________________ प्रस्तावना vii जैनशासन को प्रवर्तित भी किया; परन्तु वर्तमान जैन-आगम, जिन पर इस समय जैनशासन अवलम्बित है वे उनके उपदेश की सम्पत्ति नहीं। इसलिए कर्मवाद के समुत्थान का ऊपर जो समय दिया गया है उसे अशङ्कनीय समझना चाहिए। दूसरा प्रश्न यह है कि कर्मवाद का आविर्भाव किस प्रयोजन से हुआ। इसके उत्तर में निम्नलिखित तीन प्रयोजन मुख्यतया बतलाये जा सकते हैं (१) वैदिकधर्म की ईश्वर-सम्बन्धी मान्यता में जितना अंश भ्रान्त था उसे दूर करना। (२) बौद्ध-धर्म के एकान्त क्षणिकवाद को अयुक्त बतलाना। (३) आत्मा को जड़ तत्त्वों से भिन्न-स्वतन्त्र तत्त्व स्थापित करना। इसके विशेष खुलासे के लिए यह जानना चाहिये कि आर्यावर्त में भगवान् महावीर के समय कौन-कौन धर्म थे और उनका मन्तव्य क्या था। १. इतिहास बतलाता है कि उस समय भारतवर्ष में जैन के अतिरिक्त वैदिक और बौद्ध दो ही धर्म मुख्य थे; परन्तु दोनों के सिद्धान्त मुख्य-मुख्य विषयों में बिल्कुल अलग थे। मूल वेदों में, उपनिषदों में, स्मृतियों में और वेदानुयायी कतिपय दर्शनों में ईश्वर विषयक ऐसी कल्पना थी कि जिससे सर्वसाधारण का यह विश्वास हो गया था कि जगत् का उत्पादक ईश्वर ही है; वही अच्छे या बुरे कर्मों का फल जीवों से भोगवाता है; कर्म, जड़ होने से ईश्वर की प्रेरणा के बिना अपना फल भोगवा नहीं सकते; चाहे कितनी ही उच्च १. सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत्। दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्व:....... || ___-(ऋ.म. १०, सू. १९, मं ३) २. यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते। येन जातानि जीवन्ति। यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति तद्विजिज्ञासस्वा तद्ब्रह्मेति। -(तैति. ३-१) ३. आसीदिदं तमोऽभूतमप्रज्ञातमलक्षणम्। अप्रतय॑मविज्ञेयं प्रसुप्तमिव सर्व्वतः॥१-५।। ततस्वयंभूर्भगवानऽव्यक्तो व्यञ्जयन्निदम् । महाभूतादिवृत्तौजाः प्रादुरासीत्तमोनुदः ॥१-६।। सोऽभिध्याय शरीरात्स्वात् सिसृक्षुर्विविधाः प्रजाः। अप एव ससर्जादौ तासु बीजमवासृजत्।।१-८।। तदण्डमभवद्धैमं सहस्त्रांशुसमप्रभम्। तस्मिञ्जज्ञे स्वयं ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः।।१-९।। -मनुस्मृति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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