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________________ १५० कर्मग्रन्थभाग-३ ६, तेरहवीं संज्ञिमार्गणा के २ और चौदहवीं आहारकमार्गणा के २ भेद हैं। कुल ६२ भेद' हुए। बन्यस्वामित्वं-कर्मबन्ध की योग्यता को 'बन्धस्वामित्व' कहते हैं। जो जीव जितने कर्मों को बोध सकता है वह उतने कर्मों के बन्ध का स्वामी कहलाता है। 'संकेत के लिये उपयोगी प्रकृतियों का दो गाथाओं में संग्रह।' जिणसुर विउवाहार दु-देवाउय नरयसुहुम विगलतिगं एगिदिथावरायव-नपुमिच्छं हुण्डछेवढें ।। २।। जिनसुरवैक्रियाहारकद्विकदेवायुष्कनरकसूक्ष्मविकलत्रिकम् । एकेन्द्रियस्थावरातप नपुंमिथ्याहुण्डसेवार्तम् ।। २।। अणमज्झागिइ संघय-णकुखगनियइत्थिदुहगथीणतिगं । उज्जोयतिरिदुगं तिरि-नराउनरउरलदुगरिसहं ।।३।। अनमध्याकृतिसंहनन कुखग नीचस्त्रीदुर्भग स्त्यानर्द्धित्रिकम् । उद्योततिर्यद्विकं तिर्यग्नरायुर्नरौदारिक द्विक ऋषभम् ।।३।। अर्थ-जिननामकर्म (१), देव-द्विक-देवगति, देव आनुपूर्वी-(३), वैक्रिय-द्विक-वैक्रियशरीर, वैक्रिय अंगोपांग (५), आहारकद्विक-आहारकशरीर, आहारक अंगोपांग-(७), देवआयु (८), नरकत्रिक-नरकगति, नरक आनुपूर्वी, नरक आयु-(११), सूक्ष्मत्रिक-सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणा नामकर्म-(१४) विकलत्रिक-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय (१७), एकेन्द्रियजाति (१८), स्थावरनामकर्म (१९), आतपनामकर्म (२०), नपुंसकवेद (२१), मिथ्यात्व (२२), हुण्डसंस्थान (२३), नपुंसकवेद (२१), मिथ्यात्व (२२), हुण्डसंस्थान (२३), सेवार्तसंहनन (२४)।।२।। अनन्तानुबंधि-चतुष्क-अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ (२८) मध्यमसंस्थान-चतुष्क-न्यग्रोधपरिमण्डल, सादि, वामन, कुब्ज (३२) मध्यमसंहनन-चतुष्क-ऋषभनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलिका—(३६) दुर्भग-त्रिक-दुर्भग; दुःस्वर, अनादेयनामकर्म-(४२); स्त्यानर्द्धि-त्रिक-निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानद्धि-(४५), उद्योतनामकर्म (४६) तिर्यञ्चद्विक-तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चआनुपूर्वी-(४८), तिर्यञ्चआयु (४९), मनुष्य आयु (५०), मनुष्य-द्विक-मनुष्यगति, मनुष्य आनुपूर्वी-(५२), १.इनको विशेषरूप से जानने के लिये चौथे कर्मग्रन्थ की दसवीं से चौदहवीं तक गाथायें देखो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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