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________________ कर्मग्रन्थभाग-१ ६३ उदय से नहीं; किन्तु उष्णस्पर्श नामकर्म के उदय से शरीर उष्ण होता है और लोहितवर्ण नामकर्म के उदय से प्रकाश करता है ॥४५।। 'उद्योत नामकर्म का स्वरूप' अणुसिणपयासरूवं जियंगमुज्जोयए इहुज्जोया । जइदेवुत्तरविक्कियजोइसखज्जोयमाइव्व ।। ४६ ।। (इह) यहाँ (उज्जोया) उद्योत नामकर्म के उदय से (जियंग) जीवों का शरीर (अणुसिणपयासरूवं) अनुष्ण प्रकाश रूप (उज्जोयए) उद्योत करता है, इसमें दृष्टान्त (जइदेवुत्तरविक्किय जोइसखज्जोयमाइव्व) साधु और देवों के उत्तर क्रियशरीर की तरह, ज्योतिष्क-चन्द्र, नक्षत्र, ताराओं के मण्डल की तरह और खद्योत-जुगनू की तरह ।।४६।। भावार्थ-जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर उष्णस्पर्श रहित-अर्थात् शीत प्रकाश फैलाता है, उसे 'उद्योत नामकर्म' कहते हैं। लब्धिधारी मुनि जब वैक्रिय शरीर धारण करते हैं तब उनके शरीर में से शीतल प्रकाश निकलता है सो इसे उद्योत नामकर्म के उदय से समझना चाहिये। इसी प्रकार देव जब अपने मूल शरीर की अपेक्षा उत्तर-वैक्रिय शरीर धारण करते हैं तब उस शरीर से शीतल प्रकाश निकलता है वह उद्योत नामकर्म के उदय से चन्द्र-मण्डल, नक्षत्र-मण्डल और तारा-मण्डल के पृथ्वीकाय जीवों के शरीर से शीतल प्रकाश निकलता है वह उद्योत नामकर्म के उदय से। इसी प्रकार जुगनू, रत्न तथा प्रकाश वाली औषधियों को भी उद्योत नामकर्म का उदय समझना चाहिये। 'अगुरुलघु नाम-कर्म का और तीर्थंकर नाम-कर्म का स्वरूप।' अंगं न गुरु न लहुयं जायइ जीवस्स अगुरुलहुउदया । तित्थेण तिहुयणरस वि पुज्जो से उदओ केवलिणो ।। ४७।। (अगुरुलहुउदया) अगुरुलघु नाम-कर्म के उदय से (जीवस्स) जीव का (अंग) शरीर (न गुरु न लहयं) न तो भारी और न हल्का (जायइ) होता है। तित्थेण) तीर्थङ्कर नामकर्म के उदय से (तिहुयणस्स वि पुज्जो) त्रिभुवन का भी पूज्य होता है; (से उदओ) उस तीर्थंकर नामकर्म का उदय, (केवलिणो) जिसे कि केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है उसी को होता है ।।४७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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