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________________ कर्मग्रन्थभाग-१ जीव की स्वाभाविक गति, श्रेणी के अनुसार होती है। आकाश प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं। एक शरीर को छोड़ दूसरा शरीर धारण करने के लिये जब जीव, समश्रेणी से अपने उत्पत्ति स्थान के प्रति जाने लगता है तब आनुपूर्वी नामकर्म उसे उसके विश्रेणी पतित उत्पत्ति-स्थान पर पहँचा देता है। जीव का उत्पत्ति स्थान यदि समश्रेणी में हो, तो आनुपूर्वी नामकर्म का उदय नहीं होता। तात्पर्य यह है कि वक्र गति में आनुपूर्वी नामकर्म का उदय होता है, ऋजुगति में नहीं। अब कुछ ऐसे सङ्केत दिखलाते हैं जिनका कि आगे उपयोग है। जहाँ गति-द्विक ऐसा सङ्केत हो वहाँ गति और आनुपूर्वी ये दो प्रकृतियाँ लेनी चाहिये। जहाँ गति-त्रिक आवे वहाँ गति, आनुपूर्वी और आयु ये तीन प्रकृतियाँ ली जाती हैं। ये सामान्य संज्ञाएँ कहीं गई, विशेष संज्ञाओं को इस प्रकार समझना चाहिये नरक-द्विक-अर्थात् १ नरकगति, २ नरकानुपूर्वी और ३ नरकायु। तिर्यञ्च-द्विक-अर्थात् १ तिर्यंचगति और २ तिर्यंचानुपूर्वी। तिर्यञ्च-त्रिक-अर्थात् १ तिर्यंचगति, २ तिर्यंचानुपूर्वो और ३ तिर्यंचायु। इसी प्रकार सुर (देव)-द्विक, सुर-त्रिक; मनुष्य-द्विक, मनुष्य-त्रिक को भी समझना चाहिये। पिण्ड-प्रकृतियों में चौदहवीं प्रकृति, विहायोगतिनाम है, उसकी दो उत्तर प्रकृतियाँ हैं- १ शुभविहायोगति और २ अशुभविहायोगतिनाम। १. जिस कर्म के उदय से जीव की चाल शुभ हो, वह 'शुभविहायोगति' प्रकृति है, जैसे कि हाथी, बैल, हंस आदि की चाल शुभ है। २. जिस कर्म के उदय से जीव की चाल अशुभ हो वह 'अशुभ विहायोगति' प्रकृति है, जैसे कि ऊँट, गधा, टीढ़ी इत्यादि की चाल अशुभ है। "पिण्ड-प्रकृतियों का वर्णन हो चुका अब प्रत्येक-प्रकृतियों का स्वरूप कहेंगे, इस गाथा में पराघात और उच्छ्वास नामकर्म का स्वरूप कहते हैं।' परघाउदया पाणी परेसि बलिणं पि होइ दुद्धरिसो। ऊससणलद्धिजुत्तो हवेइ ऊसासनामवसा ।।४४।। (परघाउदया) पराघात नाम-कर्म के उदय से (पाणी) प्राणी (परेसि बलिणंपि) अन्य बलवानों को भी (दुद्धरिसो) दुर्धर्ष-अजेय (होइ) होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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