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________________ ६० कर्मग्रन्थभाग-१ १. वर्ण नामकर्म की दो उत्तर प्रकृतियाँ अशुभ हैं—१. नीलवर्ण नाम और २. कृष्णवर्ण नाम। तीन प्रकृतियाँ शुभ हैं—१. सितवर्ण नाम, २. पीतवर्ण नाम और ३. लोहितवर्ण नाम। २. गन्धनाम की एक प्रकृति अशुभ है- १. दुरभिगन्ध नाम। एक प्रकृति शुभ है- १. सुरभिगन्ध नाम। ३. रस नामकर्म की दो उत्तर प्रकृतियाँ अशुभ हैं१. तिक्तरस नाम और २. कटुरस नाम। तीन प्रकृतियाँ शुभ हैं-१. कषायरस नाम, २. आम्लरस नाम और ३. मधुररस नाम। ४. स्पर्श नामकर्म की चार उत्तर-प्रकृतियाँ अशुभ हैं १. गुरुस्पर्शनाम, २. खरस्पर्शनाम, ३. रुक्षस्पर्शनाम और ४. शीतस्पर्शनाम। चार उत्तर-प्रकृतियाँ शुभ हैं- १. लघुस्पर्श नाम, २. मृदुस्पर्श नाम, ३. स्निग्धस्पर्श नाम और ४. उष्णस्पर्श नाम। 'आनुपूर्वी नामकर्म के चार भेद, नरक-द्विक आदि संज्ञाएं तथा विहायोगति नामकर्म'। चउह गइव्वणुपुव्वी गइपुव्विदुगं तिगं नियाउजुयं । पुव्वीउदओ वक्के सुहअसुह वसुट्ट विहगगई ।।४३।। (चउह गइव्वणुपुव्वी) चतुर्विध गतिनामकर्म के समान आनुपूर्वी नामकर्म भी चार प्रकार का है, (गइपुब्विदुर्ग) गति और आनुपूर्वी ये दो, गति-द्विक कहलाते हैं (नियाउजुयं) अपनी-अपनी आयु से युक्त द्विक को (तिगं) त्रिकअर्थात् गति-त्रिक कहते हैं (वक्के) वक्र गति में-विग्रह गति में (पुव्वीउदओ) आनुपूर्वी नामकर्म का उदय होता है। (विहगगई) विहायोगति नामकर्म दो प्रकार का है-(सुह असुह) शुभ और अशुभ इसमें दृष्टान्त है (वसुट्ट) बृष-बैल और उष्ट्र-ऊँट ।।४३।। भावार्थ-जिस प्रकार गतिनामकर्म के चार भेद हैं, उसी प्रकार आनुपूर्वी नामकर्म के भी चार भेद हैं- १. देवानुपूर्वी २. मनुष्यानुपूर्वी, ३. तिर्यंचानुपूर्वी और ४. नरकानुपूर्वी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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