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________________ ५४ कर्मग्रन्थभाग-१ औदारिक, वैक्रिय और आहारक का हर एक का, तैजस और कार्मण के साथ युगपत् सम्बन्ध कराने वाले बन्धन-नामकर्म के तीन भेद हैं। तैजस और कार्मण का स्वकीय तथा इतर से सम्बन्ध कराने वाले बन्धननामकर्म के तीन भेद हैंपन्द्रह बन्यन-नामकर्म के नाम ये हैं १. औदारिक-औदारिक-बन्धन नाम, २. औदारिक-तैजस-बन्धन नाम, ३. औदारिक-कार्मण-बन्धन नाम, ४. वैक्रिय-वैक्रिय-बन्धन नाम, ५. वैक्रियतैजस-बन्धन नाम, ६. वैक्रिय-कार्मण-बन्धन नाम, ७. आहारक-आहारकबन्धन नाम, ८. आहारक-तैजस-बन्धन नाम, ९. आहारक-कार्मण-बन्धन नाम, १०. औदारिक-तैजस-कार्मण-बन्धन नाम, ११. वैक्रिय-तैजस-कार्मण-बन्धन नाम, १२. आहारक-तैजस-कार्मण-बन्धन नाम, १३. तैजस-तैजस-बन्धन नाम, १४. तैजस-कार्मण-बन्धन नाम, १५. कार्मण-कार्मण-बन्धन नाम। इनका अर्थ यह है कि १. जिस कर्म के उदय से, पूर्वगृहीत औदारिक पुद्गलों के साथ गृह्यमाण औदारिक पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध होता है; उसे औदारिक-औदारिक-बन्धन नामकर्म कहते हैं। २. जिस कर्म के उदय से औदारिक दल का तैजस दल के साथ सम्बन्ध हो उसे औदारिक-तैजस-बन्धन नामकर्म कहते हैं। ३. जिस कर्म के उदय से औदारिक दल का कार्मण दल के साथ सम्बन्ध होता है उसे औदारिक-कार्मण-बन्धन नाम कहते हैं। इसी प्रकार अन्य बन्धन नामों का भी अर्थ समझना चाहिये। औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों के पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध नहीं होता, क्योंकि वे परस्पर विरुद्ध हैं इसलिए उनके सम्बन्ध कराने वाले नाम-कर्म भी नहीं हैं। 'संहनन नाम-कर्म के छह भेद, दो गाथाओं से कहते हैं' संघयणमद्विनिचओ तं छद्धा वज्जरिसहनारायं । तहय रिसहनारायं नारायं अद्धनारायं ।।३८।। कीलिअ छेवढे इह रिसहो पट्टो यकीलिया वज्जं । उभओ मक्कडबंधो नारायं इममुरालंगे ।।३९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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