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नाट्यदर्पणम [ का० १६७, सू. २६) भ्रात्राग्रजो ऽधमैर्मन्त्री नटी-सूत्रभृतौ मिथः । पुरोधः-सार्थवाहाभ्यां य पत्नी पत्न्या जर पतिः
॥[४४] १६७ ॥ ‘ार्यशब्द' इत्यन्तो अविवक्षितलिंग-संख्या-कारकः शक्तिस्वरूपमात्रेण ग्रहणार्थमुपात्तः । तेन नानालिंग-संख्या-कारकेषु प्रयुज्यते । एवमन्यत्रापि द्रष्टव्यम् । पत्नी सधर्मचारिणी। अम्बापीति न केवलं 'आर्या' शब्देन किंतु 'अम्बा' शब्देनापि जननी-वृद्धे उच्यते। पूज्या मान्या। सा चात्रेषद् वृद्धा सती, 'भवति' इति शब्देन 'आर्या' शब्देन च वाच्या ।
. भ्रात्रा अनुजेन अग्रजो ज्येष्ठो भ्राता, अधमैहीनः मंत्री राज्ञः सचिवो नटीसूत्रधारौ मिथः परस्परं नट्या सूत्रधारः सूत्रधारेण च नटी, पुरोधः-सार्थवाहाभ्यां कर्तृभ्यां पत्नी, पन्त्या च का वृद्धः पतिः 'आर्य' इति शब्द्यते इति संबंधः। 'आर्येति शब्द्यते पत्नी' इत्यनेनैव सिद्धेऽपि 'पुरोधः-सार्थवाहाभ्यां पत्नी' इति यौवनेऽपि 'आर्या' इति वा निबंधनार्थम् ॥ [४३-४४] १६६-१६७ ॥
[छोटे. भाईके द्वारा ] बड़े भाईको [ आर्य शब्दसे भी कहा जाता है और उसके अतिरिक्त भ्राता [भी कहा जाता है] नौच पात्रोंके द्वारा मन्त्रीको [को प्रार्य] और नटी तथा सूत्रधार परस्पर एक-दूसरेको [प्रार्य तथा प्रार्या] और पुरोहित तथा सार्थवाहके साथ [ यौवनस्थामें ] पत्नी [प्रार्या ] तथा पत्नीके द्वारा वृद्ध पति [प्रार्य शब्द कहा जाता है ] । [४४] १६७।
[आयेंति इस कारिकाभागमें] इति शब्द जिसके अन्तम दिया गया है इस प्रकारका प्रार्य शम्न लिंग, संख्या, कारक प्राविसे रहित शक्तिके स्वरूपमात्रसे ग्रहण किया गया है । .इसलिए विभिन्न लिंग, संख्या तथा कारकोंमें उसका प्रयोग माना जाता है। इसी प्रकार अन्य शब्दोंके विषयमें भी समझना चाहिए। [अर्थात् अम्बा, भवती आदि शब्द भी नियत संख्या, नियत कारक प्रादिके ग्राहक न होकर सामान्य रूपसे ही पढ़े गए हैं] । पत्नीका अर्थ सहधर्मचारिणी है । 'अम्बापि' इसमें जननी तथा वृद्धाके न केवल 'प्रार्या' शब्दसे ही नहीं अपितु 'अम्बा' शब्दसे भी कही जाती है। पूज्या अर्थात् मान्य। वह कुछ थोड़े वृद्धा होनेपर 'भवतो' इस शब्दके द्वारा तथा 'आर्या' शब्दके द्वारा सम्बोधित की जाती है।
भाई अर्थात् छोटे भाई द्वारा बड़े भाईको [प्रार्य शव्वसे], तथा नीच पात्रोंके द्वारा मन्त्री प्रर्थातू राजाके सचिवको [प्रार्य कहा जाता है ] तथा नटो और सूत्रधार एक-दूसरे को परस्पर अर्थात नटोकेद्वारा सूत्रधारको [प्रायं]. तथा सूत्रधारकेद्वारा नटीको [प्रार्या सम्बोधन किया जाता है] । पुरोहित तथा सार्यवाह रूप प्रयोगकर्ताओं के द्वारा पत्नी [आर्या कही जाती है ] और पत्नीके द्वारा वृद्ध पति [प्रार्य रूप पदसे सम्बोधित किया जाता है । 'आयति शब्धते परनी' इस १६६वीं कारिकाके प्रारम्भिक भाग] से ही [पत्नी के लिए प्रार्या शब्दके प्रयोगके] सिद्ध होनेपर भी 'पुरोधः-सार्थवाहाभ्यां पत्नी' इसमें [जो पत्नीको प्रार्या पदसे सम्बोधित किए जानेको मात दुबारा कही गई है] वह [पुरोहित तथा सार्थवाहकेद्वारा यौवनावस्थामें भी पत्नीको 'प्रार्या' कहकर ही सम्बोधित करना चाहिए इस बातको सूचित करने के लिए कही गई है ॥४३.४४] १९६-१६७ ॥
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