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का० १५५, सू० २३६-३७ ] चतुर्थो विवेकः
[ ३७१ "पिशुनः' कर्णेजपः । 'क्लीयो हीनसत्त्व इति ॥ [५] १५८ ॥
अथोत्तमां त्रियमाह[सूत्र २३६] -लज्जावती मृदु/रा गम्भीरा स्मितहासिनी। विनीता कुलजा दक्षा वत्सला योषिदुत्तमा ॥
॥ [६] १५६ ॥ वत्सला स्नेहलेति ॥ [६] १५६ ॥ अथ मध्यमा-नीचे
[सूत्र २३७]-नरवन्मध्यमा-नीचेमध्यम-नीचपुरुषवन्मध्यमा-नीचे स्त्रियौ बोद्धव्ये । एषा नृ-स्त्रियोविधा प्रकृतिरनुरूपा विरूपा रूपानुरूपिणी चेति पुनस्त्रिप्रकारा। तत्रानुरूपा पुंसः पौंस्नः, स्त्रियास्तु स्त्रैणो वयोऽवस्थाऽनुरूपो भावः । विरूपा तु बालोचितभावस्य स्थविरेण, स्थविरोचितस्य तु बालेन दर्शनम् । रूपानुरूपिणी पुरुषोऽपि स्त्रीरूपेण भूत्वा, स्त्रिया पुंरूपया च श्री-पुसभावदर्शनमिति ॥ - "पिशुन' अर्थात् चुगलखोर । 'क्लोब' अर्थात् शक्ति रहित ॥[५]१५८॥
प्रब प्रागे उत्तम स्त्री [के गुणों को कहते हैं
[सूत्र २३६] —लज्जावती, मृदु, धीर, गम्भीर, मन्द मुस्कानेवाली, नम्र, उच्चकुलोत्पन्न, चतुर और सहनशील स्त्री उत्तम स्त्री कहलाती है ।[६]१५६।
'वत्सला' अर्थात् स्नेह करने वाली ॥[६] १५६॥
इस प्रकार यहाँ तक उत्तम, मध्यम व मधम तीनों प्रकारकी प्रकृतिवाले पुरुषों तथा तीनों प्रकृति की स्त्रियोंके गुण, कहे गए है।
प्रब मागे मध्यमा तथा नीचा स्त्रियोंके लक्षण कहते हैं[सूत्र २३७] -[मध्यम तथा नीच पुरुषके समान मध्यमा तथा नीच स्त्रियां होती है।
मध्यम तथा नीच पुरुषोंके समान [प्रकृतिवाली] मध्यमा तथा नीचा स्त्रियोंको समझना चाहिए। पुरुष तथा स्त्रियोंको यह [उत्तम, मध्यम तथा प्रधम रूप तीन प्रकारको प्रकृति (१) अनुरूपा, (२) विरूपा तथा (३) रूपानुरूपिणी भेदसे फिर तीन-तीन प्रकारको होती है। उनमेंसे पुरुषका पुरुषके अनुरूप और स्त्रीका स्त्रीके अनुरूप प्रायु और दशा प्रावि के अनुकूल भाव 'अनुरूपा' [प्रकृति कहलाता है। पौर बालोचित भावका वृद्धकेद्वारा अपवा वृद्धोचित भावका बालकके द्वारा प्रदर्शन 'विरूपा' प्रकृति [कहलाता है। जहां पुरुष भी स्त्री बनकर प्रथवा स्त्री भी पुरुष बनकर [क्रमशः] स्त्रीभाव तथा पुरुषभावको प्रदर्शन करते हैं वह 'रूपानुरूपिणी' प्रकृति कहलाती है।।
इस प्रकार यहाँ तक उत्तम, मध्यम तथा अधम प्रकृति के पुरुष तथा स्त्रियोंके लक्षण दिखलाकर आगे मध्यम तथा प्रधम प्रकृतिके पात्रोंको भी नाट्यमें नायक बनाया जा सकता है इस बातको लिखते हैं। प्रथम विवेकमें केवल उत्तम प्रकृति वाले नायकोंके बनाए जानेका विधान किया था। उससे अपवाद रूप में यहाँ मध्यम तथा नीच प्रकृति के नायकोंके बनानेका भी विधान किया जा रहा है।
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