SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 473
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५६ ] नाट्यदर्पणम् [ का० १५२, सु० २२७ फुल्लादयः षट् | अधरस्य विवर्तन कम्पादयः षट् । चिबुकस्य कुट्टन - खण्डनादयो बहुषः । ग्रीवायाः समा नतादयो नव । हस्तयोः पताक-विपताकादयश्चतुःषष्टिः । वक्षस भुग्न-निर्भुग्नादयः पच । पार्श्वयोर्नत-समुन्नतादयः पञ्च । उदरस्य शाम खल्ल - पूर्णलक्षणास्त्रयः । कटधारिन्नानिवृत्तादयः पञ्च । ऊर्वोः कम्पन - वलनादयः पच । जङ्घयोरावर्तित - नतादयः पच । पादयोरुद्घटित समादयः षट् । तथैकपादप्रचाररूपाः समपादा-स्थितावर्तिकादयो भौम्यः षोडश । अतिक्रांत अपक्रांतादयः षोडश काशिक्यश्च 'चार्यः । स्थिरहस्त-पर्यस्तुकादयो अङ्गहारा द्वात्रिंशत् । पिवक जाना, या फूल जाना प्रावि छः, प्रधर के फड़कना, काँपना आदि छः, ठोड़ीके कुछ, खण्डन प्रावि बहुतसे [अभिनय प्रकार होते हैं] । गर्दन के सभा, नता श्रादि नौ, हाथोंके पताका, त्रिपताकादि ६४ प्रकार होते हैं । छातीके प्राभुग्न, निर्भुग्न आदि पाँच, पावके नत, समुन्नत मादि पाँच, उदरके दुर्बल, खाली और भरा प्रावि तीन कमरके छिन्न अनिवृत्त आदि पांच, जांघों के कम्पन, लपेटना प्रावि पाँच, जंधानोंके आवर्तित नत श्रादि पाँच [अभिनय प्रकार होते हैं] । पैरोंके उद्घटित, सम आदि छः [प्रभिनय प्रकार होते हैं ]। और एक पैरसे चलने रूप समपाद, स्थित, प्रावर्तित प्रादि सोलह प्रकारको भूमिपर की जाने वाली 'चारी' तथा प्रतिक्रांत अपक्रान्त प्रादि सोलह प्रकारको आकाशीय 'चारी' एवं स्थिर हस्त पर्यस्तक आदि बत्तीस प्रकारके अङ्गहार [ ये सब प्राङ्गिक अभिनयके अन्तर्गत प्राते हैं] । इसमें ग्रन्थकारने जिन 'चारी', 'अङ्गहार' मादि प्राङ्गिक अभिनय भेदोंका उल्लेख किया है उनका वर्णन नाट्यशास्त्र के दशम अध्यायमें विस्तारपूर्वक दिया गया है। उसमें 'बारी' का लक्षण निम्न प्रकार किया है एक पादप्रचारो यः सा चारीत्यभिसंज्ञिता । द्विपादक्रमणं यत्तु करणं नाम तद्भवेत् ॥ १२-३ ॥ अर्थात् एक परकेद्वारा चलनेका नाम 'चारी' श्रोर दोनों पैरोंसे परिक्रमरण करनेको 'करण' कहते हैं । नाटक में 'चारी' के महत्त्वका प्रदर्शन करते हुए भरतमुनिने लिखा हैचारीभिः प्रसृतं नृत्तं चारीभिश्चेष्टितं तथा । चारीभिः शस्त्रमोक्षश्च चार्यो युद्धे च कीर्तिताः ॥ ५ ॥ यदेतत् प्रस्तुतं नाट्यं तच्चारीष्वेव संस्थितम् । न हि चार्या बिना किंचिन्नाट्य ऽङ्ग सम्प्रवर्तते ॥ ६ ॥ नाट्यमें चारीके महत्त्वका प्रतिपादन करनेके बाद भरतमुनिने प्राग सोलह प्रकारको भौमी और सोलह प्रकारकी प्रकाशिकी चारियोंके नाम गिनाकर उनके लक्षण विस्तारपूर्वक दिखलाए हैं । इन सबको देखना चाहें तो नाट्यशास्त्र के दशम अध्याय में देखना चाहिए । यहाँ ग्रन्थकारने उनके नामोंका संकेतमात्र किया है। वे नाम निम्न प्रकार गिनाए गए हैंसमपादा स्थिताad शकटाख्या तथैव च । अध्यधिका चाषगतिर्विच्यवा च तथा परा ॥ ८ ॥ एडकाक्रीडिता बद्धा उरुवृत्ता तथांकिता । उत्स्पन्दिताथ जनिता स्यन्दिता चापस्यन्दिता ॥ ६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy