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________________ का० ५६, सू० ६६-६७ ] राक्षसः (६) अथ द्युतिः प्रथमो विवेकः आलम्ब्य प्रियशिष्यतां तु इलिना संज्ञा रद्दः सा कृता यामासाद्य कुरूत्तमः प्रतिकृतं दुःशासनारौ गतः ॥ इति अत्र तापसेन व्यामोहः कृतः ||५|| [ सूत्र ६६ ] -- तिरस्कारो द्युतिः यथा कृत्यारावणे मन्दोदरी प्रति अंगदः " मा गानिष्ट पुन जगामिनी गत्वा पुनः स्थीयतां, यत्रास्ते भुजवीर्यदपिनमदी विद्रावणो रावणः । - मद्वाहुद्रयपञ्जगन्नग्गता मृडे किमाक्रन्दसि सिंहस्यांकमुपागतामित्र मृगी कस्वां परित्राम्यते ॥" तर्जनीद्वेजने यति केचिदिच्छन्ति । अपरे तु नर्जनाद्युतिं मन्यन्ते । नदेतन्मतद्वयमध्यश्रीभेदान संगृहीनम् । एवमन्यदपि माज्ञान पारम्पर्येण वा न्यक्कारपरं वाक्यं द्युतिरेव | (७) अथ वेद: [ सूत्र ६७ ] - - खेदः श्रमः काय मनोद्भवः । यथा विक्रमोर्वश्यां पुरूरवाः - [ १६७ राक्षस - -बलरामजीने श्रपने प्रिय शिष्य [ दुर्योधन] का पक्ष लेकर चुपचाप कोई ऐसा संकेत किया जिसको प्राप्त कर कुरुराज [दुर्योधन ] ने दुःशासनको भारने वाले [भीमसेन] से [दुःशासनके वका] बदला ले लिया [ श्रर्थात् भीमसेनको मार डाला ] ।” यहाँ तापस [वेषधारी राक्षस ] ने व्यामोह उत्पन्न कर दिया है। Jain Education International (६) अब 'ति' [ नामक ग्रामर्श सन्धिके छटे अङ्गका निरूपण करते हैं ] - [ सूत्र ६५ ] - तिरस्कार करना 'द्य ुति' [कहलाता ] है ]-- जैसे कृत्यारावरणके में मन्दोदरीके प्रति श्रङ्गद [ कहता है ] " मत जाओ, ठहरो, अच्छा फिर चलो, तनिक इधर चल कर खड़ी हो जानो, जहाँ पर भुजाओं के पराक्रम के अभिमान से चूर यह [ शत्रुनोंको] भयभीत करने वाला रावरण [ खड़ा ] है । श्ररी मूर्ख ! मेरी दोनों भुजानोंके पञ्जरमें पड़ी हुई तू चिल्ला किस लिए रही है । सिंहके पजे में फंसी हुई हरिरणीके समान श्रब कौन तुझको बचा सकता है ?" कोई लोग डाटने-फटकारने [तर्जन उद्वेजन] को 'द्युति' कहते हैं । दूसरे लोग डाटने और घसीटनेको 'द्युति' कहते हैं। इन दोनों मतोंमें अर्थका भेद न होनेसे [ इसी द्युति-लक्षरके: भीतर ] संग्रह हो गया है । इसी प्रकार साक्षात् या परम्परासे अन्य अपमान-परक वाक्य भी 'धुति' ही माने जाते हैं । (७) खेद अब 'खेद' [नामक अमर्श सन्धिके सप्तम श्रङ्गका लक्षरण श्रादि करते हैं] [ सूत्र ६६ ] - शारीरिक या मानसिक श्रम 'खेद' [कहलाता ] है । जैसे विक्रमोर्वशीमें पुरूरवा कहते हैं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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