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________________ (ख) रसस्य सुखदुःखात्मकतया तदुभयलक्षरणरवेन उपपद्यते, प्रतएव तदुभयजनकत्वम् । -रसकलिका (रुद्र भट्ट) नम्बर प्राफ़ रस'ज़ पृष्ठ १५५ (ग) रसा हि सुखदुःखरूपाः। शृं० प्र० २ग भाग पृष्ट ३६६ किन्तु इन कथनों से यद्यपि यह स्पष्ट प्रतीत नहीं होता कि उक्त प्राचार्य सभी रसों को सुखात्मक और दु:खात्मक स्वीकार करते थे अथवा कुछ को सुखात्मक और कुछ को दु.खात्मक, किन्तु फिर भी सम्भावना यही है कि वे भी रामचन्द्र-गुणचन्द्र के समान शृंगार, हास्य आदि को. सुखात्मक मानते होंगे और भयानक, करुण प्रादि को दुःखात्मक । इन कथनों के अतिरिक्त प्राचार्य वामन ने किसी प्राचार्य के नाम पर ऐसा कथन भी उद्धृत किया है, जिससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि वह स्वयं अथवा सम्भवता कुछ अन्य प्राचार्य भी करुण रस में सुख और दुःख दोनों का सम्मिश्रण मानते थे: कवरणप्रेक्षणीयेषु सम्प्लवःसुखदुःखयो। यथाऽनुभवतः सिद्धस्तथैवोज:प्रसादयोः ॥ का० सू० वृ० ३।१।६ वृत्ति अर्थात् जिस प्रकार करुण रस के नाटकों में सुख और दुःख का मिश्रण सहृदयजनों के अनुभव द्वारा सिद्ध है, उसी प्रकार अोज पोर प्रसाद का मिश्रण भी उनके अनुभव द्वारा सिद्ध है। सुख पहले होता है अथवा दुःख पहले—इस मोर इस श्लोक में कोई संकेत नहीं है, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें करुण रस में दुःख की स्थिति पूर्वमान्य होगी, और सुख की बाद में । दूसरे शब्दों में, सहृदय लौकिक दुःख का अनुभव करता हुआ भी अन्ततः काव्यगत मानन्द का प्रलौकिक सुख का अनुभव करता है। कुछ इस प्रकार की धारणा की व्याख्या मधुसूदन सरस्वती ने सम्भवतः सर्वप्रथम मौलिक रूप से की है। उनके कथन का अभिप्राय यह है कि सभी रसों से निस्सन्देह सुख का अनुभव होता है, परन्तु यह अनुभव सब रसों में तुल्य रूप से नहीं होता। इसका कारण यह है कि सत्त्वगुण की प्रधानता ही सुख का हेतु है, किन्तु ऐसा कभी नहीं होता कि किसी रस में रजोगुण मौर तमोगुण नितान्त अभिभूत हो जाएं और सस्वगुण पूर्णत: माविर्भूत अथवा उद्विक्त हो जाए, अपितु रजोगुण और तमोगुण किसी न किसी अंश तक अवश्य विद्यमान रहते हैं। ये किस रस में कितनी मात्रा में विद्यमान रहते हैं, यद्यपि इसका निर्णय कर सकना कठिन है तथापि वे रहते अवश्य है। अत: उनके मिश्रण के तारतम्य के अनुसार सब रसों में सुख के साथ दुःख का मिश्रण भी समझना चाहिए। इस प्रकार हमारे सम्मुख निम्नोक्त-चार विकल्प उपस्थित होते है(क) सभी रस सुखात्मक है, (ख) सभी रस सुखदुःखात्मक हैं, . (ग) श्रृङ्गार, हास्य प्रादि रस सुखात्मक हैं मोर भयानक, करुण मादि रस दुःखात्मक हैं, (घ) शृंगार मादि रस तो सुखात्मक हैं किन्तु भयानक प्रादि रस सुखदुःखात्मक है। १. सस्वगुणस्य सुखरूपत्वात् सर्वेषां भावना सुलमयत्वेऽपि रखस्तमोशमिश्रणात तारतम्य भवगन्तव्यम् । प्रतो न सर्वेषु रसेषु तुल्यसुखानुभवः । -म० भाऊ र० पृष्ठ १५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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