SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८९ सप्तमोऽङ्कः १८९ नलः- (सरोषम्) तं दुरात्मानमिहानयत। (ततः प्रविशति नियन्त्रितभुजस्तापस:) (प्रत्यभिज्ञाय साक्षेपम्) आः पाप! स एवासि येनाहमरण्ये प्रतार्य देवीं सन्त्याजितः। तापस:- नाहमरण्ये जगाम, न च त्वां प्रतारयामास। नल:- (सरोषम्) अरे! अपसर्प कर्णेजप! आधून! ब्रह्मराक्षस! अतिजाल्म! अन्नदावानल! साम्प्रतमपि मां प्रतारयसि? ताडयत भोः! दुरात्मानमेनं कशाभिः। (प्रविश्य कशापाणयस्तापसं ताडयन्ति) तापस:- (साक्रन्दमुच्चैःस्वरम्) मा मा ताडयत, सत्यमावेदयामि। नल:- आवेदय। तापस:- लम्बोदर एवाहम्। मया विदर्भनिर्वासितः कुबरान्तिकं घोरघोणो नीतः घोरघोणेनैव कपटकैतवं कूबरोऽध्यापितस्ततस्त्वं पराजितः। नल- (क्रोध के साथ) उस दुष्टात्मा को यहाँ लाओ। (पश्चात् हाथ बँधे हुए तपस्वी प्रवेश करता है) (स्मृति का अभिनय करके, आक्षेपपूर्वक) अरे पापी! तुम वही हो जिसने मुझे वन में ठगकर देवी का परित्याग करवाया। तापस- न तो मैं जंगल में गया और न ही तुमको ठगा। नल- (क्रोध के साथ) अरे जासूस पिशुन! औदरिक ब्रह्मपिशाच! कुकर्मी! अन्नदावानल! अभी भी मुझे ठग रहे हो? अरे मारो, इस दुष्टात्मा को चाबुक से मारे। (चाबुक लिये प्रवेश करते हैं और तपस्वी को मारते हैं) तापस- (रोता हुआ जोर से) मत मारो मुझे मत मारो, सत्य बात कहता हूँ। नल- कहो। तापस- मैं लम्बोदर ही हूँ. मैंने विदर्भदेश से निकाले गये घोरघोण को कूबर के समीप लाया। घोरघोण ने ही कूबर को धूत-क्रीड़ा की शिक्षा दी। पश्चात् (उस कूबर - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001890
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandrasuri
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy