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________________ माश्वासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् छोड़कर शान्त हो जाता है उसी प्रकार समुद्र प्रिय-समागम से सुख प्राप्त कराने वाले चन्द्र के प्रकाश के उपगत होने पर बढ़ता है और उसके समाप्त हो जाने पर चाञ्चल्य स्वभाव को छोड़कर शान्त हो जाता है ।।२०।। अथ शङ्खादिसत्तामाहदरफुडिसिप्पिसंपुडपलोट्टसङ्खमुहभरिप्रमुत्ताणियरम् । मारुप्रदूरुच्छालिमजलभरिअद्धवहपडिणिप्रत्तजलहरम् ॥२१॥ [दरस्फुटितशुक्तिसंपुटप्रलु ठितशङ्खमुखभृतमुक्तानिकरम् । मारुतदूरोच्छालितजलभृतार्धपथप्रतिनिवृत्तजलधरम् ॥] परिणतमुक्ताभरादीषत्फुटिते शुक्तिसंपुटे मुक्ताबुभुक्षया प्रलुठितं यच्छङ्खमुखं तेन भृतो धृतो मुक्तानिकरो यत्र तम् । शुक्तिपुटाच्छङ्घनाकृष्टा मुक्तास्तदभ्यन्तरे प्रविशन्तीत्यर्थः । एवं मारुतेन दूरं व्याप्योत्थापितैर्जलै ताः पूर्णा, अत एव कृतकार्यत्वादर्धपथान्नभस्त एव परावृत्ता जलधरा यस्मात्तमिति जलबाहुल्येन खातगगनयोरपि समानाकारत्वमुक्तम् ॥२१॥ विमला यहां समद्र में मोतियों के पक जाने पर जब सीपी का मह थोड़ाबोड़ा खुल गया तो (मोतियों की भूख से) लुढ़क कर समीप पहुंच शंख ने सीपी के सम्पुट से मोतियों को खींच कर अपने मुंख में धर लिया है। वायु द्वारा ऊपर बहुत दूर तक उछाले गये जल से बादल वहीं पूर्ण हो गये, अतएव (समुद्र तक आने की आवश्यकता न रह जाने से) आकाश के आधे मार्ग से ही वे लौट गये हैं ॥२१॥ मरकतादीनाह मरगअमणिप्पहाहप्रहरिमाअन्तजरढप्पवालकिसलअम् । सुरगमगन्धुद्धाइसकरिमअरासण्णदिण्णमेहमुहवडम् ॥२२॥ [मरकतमणिप्रभाहतहरितायमानजरठप्रवालकिसलयम् । सुरगजगन्धोद्धावितकरिमकरासन्नदत्तमेघमुखपटम् ॥] मरकतमणीनां प्रभाभिराहताः संबद्धाः अत एव हरितायमाना जरठाश्चिरन्तनाः प्रवालस्य विद्रुमस्य पल्लवा यत्र तम् । मरकतकान्तिसंबन्धात्प्रवालकिसलयानामपि हरिद्वर्णत्वमित्यर्थः । एवं जलमज्जनार्थमागच्छतां सुरगजानामरावतादीनां गन्धादर्थतो मदस्योद्धावितेभ्यो गगनमार्ग एवागच्छत एतानाकलय्योध्वं नभसि गच्छद्भयः करिमकरेभ्यो जलहस्तिभ्य आसन्ने निकट एव दत्ता मेघा एव मुखपटा येन तम् । तथा च सुरगजयुयुत्सयोद्धावितकरिमकराणामासन्नत्वेन जलपानार्थमागच्छन्तो नभसि वर्तमाना मेघा मुखपटत्वेनोत्प्रेक्षिताः । मुखपटो. मुखावरणपट: । अन्यत्रापि गजयोः संनिपाते दर्पोद्धताय मुखपटो दीयत इति समाचारः । तथा च करिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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