SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 693
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सेतुबन्धम् [पञ्चदश गङ्गावीचिभिरञ्चितो हरजटाजूट: समुज्जृम्भते यावत्तावदकब्बरेण जगती राजन्वती वर्तताम् ।। इति श्रीश्रीमनिखिलमहीमहेन्द्रमुकुटमणिमयूखमञ्जरीपिञ्जरीकृत. कमलसकलसार्वभौमशिरोमणिश्रीमदकब्बरजल्लालदीन्द्रकृपाकटाक्षवीक्षितभानुभक्तिपरायणहृदयहर्म्यनिवासित. नारायणमहाराजाधिराजश्रीरामदासविरचितो रामसेतुप्रदीपो नाम ग्रन्थः परिपूर्णः ।। विमला-यह रावणवध नामक काव्य यहाँ समाप्त हुआ। इसमें सीता को प्राप्त करने से राम का जो अभ्युदय प्रकट हुमा उसी का वर्णन है । इसमें सीता के प्रति राम के अनुराग का (सूचक सेतुबन्ध-रावणवधादिरूप ) चिह्न तो है ही, प्रत्येक आश्वास के अन्त में इसका (असाधारण) चिह्न यह भी है कि 'अनुराग' शब्द प्रयुक्त हुमा है। ( सीता और राम से सम्बन्धित होने के कारण) यह काव्य समस्त जन के द्वेष का नहीं, अनुराग का पात्र है ( अतः पाठकों से आशा की जाती है कि वे भी इसे पढ़ कर सीताराम में तथा इस कान्य में अनुरक्त होंगे )men इस प्रकार श्रीप्रवरसेनविरचित कालिदासकृत दशमुखवध महाकाव्य में पन्द्रहवें आश्वास की 'बिमला' हिन्दी व्याख्या समाप्त हुई। -* * समाप्तश्चायं ग्रन्थः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy